बुधवार, 19 जनवरी 2011

विदेशों में जमा काला धन देश लूटने के बराबर

दैनिक जागरण से साभार -


Jan 19, 02:50 pm

नई दिल्ली। विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर पूरी जानकारी देने में सरकार की हिकिचाहट पर नाखुशी जताते हुए हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारतीय संपत्ति को विदेशों में रखना देश को 'लूटने' के बराबर है।
न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की खंडपीठ ने पूर्व विधि मंत्री राम जेठमलानी और अन्य कई लोगों की ओर से दायर विदेशों में जमा काले धन संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह शुद्ध तौर पर राष्ट्रीय संपत्ति की चोरी है। हम दिमाग को झकझोरकर रख देने वाले अपराध की बात कर रहे हैं। हम विभिन्न संधियों के ब्यौरे में नहीं जाना चाहते।
सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने खंडपीठ को बताया कि सरकार ने दोहरा काला धन बचाव अधिनियम के तहत क्या कदम उठाए हैं, जिस पर पीठ ने यह टिप्पणी की। अदालत इस बात पर भी नाखुश थी कि सरकार ने जर्मनी के लिचटेंस्टीन बैंक में 26 लोगों द्वारा जमा किए पैसे से जुड़ी जानकारी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी एक हलफनामा दायर किया है।
खंडपीठ ने सवाल किया कि आपके पास इतनी ही जानकारी है या आप कुछ और भी बताने वाले हैं? पीठ ने टिप्पणी की, 'हम बहुत बड़ी राशि की बात कर रहे हैं। यह देश के साथ लूट है।
खंडपीठ ने इस बात पर भी दु:ख जताया कि सीलबंद लिफाफे में जो हलफनामा दाखिल किया गया है, जिसमें 26 लोगों के नामों का संदर्भ है, उस पर सिर्फ किसी निदेशक स्तर के अधिकारी के हस्ताक्षर हैं। न्यायालय ने कहा कि इस पर वित्त सचिव, स्वयं के हस्ताक्षर होने चाहिए थे।
पीठ ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि इससे सरकार की 'गंभीरता' का पता चलता है। पीठ ने कहा कि हमने सोचा था कि जिस व्यक्ति को हलफनामे पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत किया गया, वह वित्त सचिव ही होने चाहिए थे। सालिसिटर जनरल ने हालांकि यह कह कर खंडपीठ को शांत करने की कोशिश की कि यह एक स्थापित प्रक्रिया है कि जब भी कोई हलफनामा दाखिल होता है, उसे शीर्ष स्तर की सहमति से ही दाखिल किया जाता है।
सुब्रमण्यम ने इस बात को भी स्वीकार किया कि विदेशी बैंकों में जमा काले धन की राशि दिमाग को झकझोर कर रख देने वाली है, लेकिन उन्होंने इस पूरी जानकारी को साझा करने में सीमाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को उन देशों के साथ आपसी समझौतों से काम करना होता है, जिनके बैंकों में यह धनराशि जमा है।
खंडपीठ ने सरकार से यह भी सवाल किया कि वह इससे जुड़ी जानकारी को सिर्फ लिचटेंस्टीन बैंक तक ही क्यों सीमित रख रही है। सालिसिटर जनरल ने कहा कि वह रिट याचिका में दी गई बातों के आधार पर जानकारी दे रहे हैं, इस पर पीठ ने पूछा कि आप इस मामले को लिचटेंस्टीन बैंक तक क्यों सीमित रख रहे हैं।
पीठ ने पूछा कि वह कौनसी बात है जो इस अदालत को जनहित में इस रिट याचिका का क्षेत्र बढ़ाने से रोक रही है। पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि हम सिर्फ यह चाहते हैं कि आप विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई राशि के बारे में सारी जानकारी दें। न्यायालय ने यह भी कहा कि यहां कर से बचने का सवाल ही नहीं पैदा हो रहा।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अनिल दीवान ने कहा कि सरकार इस मामले में जानकारी छिपा रही है और यह पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि डीटीएए की याचिका जनता से जानकारी छिपाने की दुर्भावना के कारण ली गई है और कर से बचने के मुद्दे का यहां कोई संदर्भ नहीं है क्योंकि इस राशि का स्रोत आतंकवाद, मादक पदार्थ या हथियारों की तस्करी भी हो सकता है।
न्यायालय ने पिछले सप्ताह इस बात पर भी नाखुशी जताई थी कि सरकार विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नामों का खुलासा करने की अच्नच्छुक है।
सुब्रमण्यम ने 14 जनवरी को पीठ को बताया था कि सरकार को विवरण मिल गया है, लेकिन वह उसका खुलासा नहीं करना चाहती, इस पर पीठ ने कहा था कि जानकारी का खुलासा करने में क्या परेशानी है।

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