सोमवार, 29 अगस्त 2011

'जश्न की लूट'

मोहन लाल शर्मा

देर शाम का वक्त था, घड़ी की सुईयां पौने नौ बजा रहीं थी और जगह थी - दिल्ली का इंडिया गेट. मौका था अन्ना हज़ारे के अनशन ख़त्म होने का...
अन्ना टीम के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने समर्थकों को शाम छह बजे इंडिया गेट पर जुटने का आह्वान किया था. इसके बाद दसियों हज़ार लोग वहाँ पहुँच गए.
यूँ तो हर रविवार को ही इंडिया गेट पर दिल्ली की जनता चाट-पकौड़े, गोलगप्पे और भेल-पूड़ी खाने के लिए जुटती है, पर इस रविवार की बात कुछ अलग ही थी.
हाथों में तिरंगा लहराते लोग अन्ना और जनलोकपाल विधेयक के पक्ष में नारे लगा रहे थे. कुछ मिठाइयाँ बाँट रहे थे, तो कई ढ़ोल नगाड़ों की थाप पर जमकर नाच रहे थे.
हाथों में मोमबत्ती लिए लोगों की टोलियां आ रहीं थी.
बच्चे, बूढ़े और जवान दस-दस रूपए में दोनों गालों पर पेंट से तिरंगा झंड़ा बनवा रहे थे.
पानी बेचने वाले की स्टॉल पर अचानक कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. बीस पच्चीस की तादाद में लोग उसकी दुकान से पानी की बोतलें लूट के भागने लगे. पहले एक आदमी ने बोतल निकाली, फिर दूसरे ने, फिर तीसरे ने... इसके बाद तो ये सिलसिला उस समय तक चलता रहा जब तक उसकी पूरी दुकान ही लुट नही गई. पांच मिनट के भीतर ही बोतलों की सारी पेटियाँ गायब हो चुकी थी.
दस रूपए में "मैं अन्ना हूँ" की टोपी धड़ल्ले से बिक रही थी. हर तरफ़ उत्सव जैसा ही माहौल था.
इसी माहौल में जोश से लबरेज़ परिवार दूधिया रोशनी में नहाए इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिंचा रहे थे.
दूर के दृश्यों की तस्वीरें कैद करने के लिए टीवी चैनलों के कैमरे क्रेन पर तैनात थे और इन्हीं के ज़रिए सारे टीवी चैनल जश्न के इस मज़र का सीधा प्रसारण कर रहे थे.

लुट गई दुकान 

पुलिस का घेरा काफ़ी मज़बूत था. चप्पे- चप्पे पर पुलिस भी मौजूद थी. लेकिन पुलिस लोगों के इस जश्न में कोई बाधा नही पहुँचाना चाहती थी.
सब कुछ शांतिपूर्ण था. साढ़ै नौ बज़े के आसपास मैने देखा कि एक पानी बेचने वाले के स्टॉल पर अचानक कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. बीस पच्चीस की तादाद में लोग दुकान से पानी की बोतलें लूट के भागने लगे.
पहले एक आदमी ने बोतल निकाली, फिर दूसरे ने, फिर तीसरे ने... इसके बाद तो ये सिलसिला उस समय तक चलता रहा जब तक उसकी पूरी दुकान ही लुट नही गई.
पांच मिनट के भीतर ही बोतलों की सारी पेटियाँ गायब हो चुकी थी.
उस दुकानदार ने शुरुआत में रोकने की कोशिश की, पर चाह कर भी वो कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि उसके पास इसे देखते रहने के अलावा कोई और विकल्प भी नही था.
पानी की बोतल लूट के भाग रहे एक लड़के को मैने रोका और उससे पूछा कि दुकान क्यों लूट रहे हो, उसने जवाब दिया कि सब तो यही कर रहे हैं ना, तो मैंने क्या ग़लत किया.
इस घटना पर न तो किसी टीवी चैनल के संवाददाता की नज़र गई और न ही किसी पुलिस वाले की.
ये सब देखने के बाद मैंने इंडिया गेट के एक कोने में अंधेरे में बैठी भुट्टे सेक रही एक अधेड़ उम्र की महिला की ओर रुख़ किया.
उससे मैंने पूछा कि सब लोग तुम्हारे भुट्टे के पैसे देते हैं?
तो उसने कहा, "नहीं साहब आज तो तमाम लोग ऐसे ही थे, जिन्होंने भुट्टे खाए और बिना पैसे दिए ही चले गए."
भले ही इन्हें लोग छोटी घटनाएं कहेंगे ,पर मेरे दिमाग में इन घटनाओं से कुछ सवाल पैदा हुए...कि जश्न किसका औऱ किसके लिए...क्या ये ही आज़ादी की दूसरी लड़ाई है... क्या इसी के लिए अन्ना अनशन पर बैठे थे ?
    (साभार बीबीसी से साभार)

शनिवार, 13 अगस्त 2011

आग लगाकर दे दी जान


तंगी झेल रहा था, आग लगाकर दे दी जान

Aug 14, 02:21 am
अलीगढ़ : आर्थिक तंगी से परेशान चल रहे अधेड़ ने खुद पर मिंट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। शनिवार सुबह घायल ने मेडिकल कालेज में दम तोड़ दिया।
देहली गेट क्षेत्र के महफूज नगर निवासी सलीम (50) पुत्र इदे खां ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर शुक्रवार को दिन में तकरीबन तीन बजे खुद को आग लगाई थी। गंभीर हालत में परिजनों ने उसे मेडिकल कालेज में भर्ती कराया था।