मंगलवार, 5 जून 2012


लूट की छूट और उत्तर प्रदेश की दलित राजनीती 

खास दरबारी ही बने अंटू की मुसीबत
Jun 05, 07:54 pm
लखनऊ [आनन्द राय]। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र उर्फ अंटू मिश्र एनआरएचएम घोटाले की जांच के शुरुआती दौर से ही सीबीआइ की हिट लिस्ट में रहे, लेकिन उनके खास दरबारियों ने उनकी मुसीबत और बढ़ा दी। जांच के गति पकड़ते ही अंटू के चहेते ठेकेदार उनका कच्चा चिट्ठा खोलने लगे। उन्होंने जिन सीएमओ को अपना समझकर मलाईदार जिलों में तैनाती दी वह भी उनका राज छुपा न सके।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ अब एनआरएचएम घोटाले में अंटू मिश्र को चौतरफा घेर चुकी है। जांच की शुरुआत में अंटू के खिलाफ सबसे पहले पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने जुबान खोली थी, लेकिन तब सीबीआइ के पास अंटू के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। अंटू को शिकंजे में लेने के लिए सीबीआइ ने उनके खास सीएमओ और चहेते ठेकेदारों की सूची तैयार की और फरवरी के आखिरी हफ्ते में छापेमारी की। तब कुछ सीएमओ मौके से भाग गये, लेकिन जो पकड़ में आये, उन्होंने सीबीआइ को एनआरएचएम की दास्तां सुनाई और सबने अंटू के ही सिर घोटाले का ठीकरा फोड़ा। इनमें कई सीएमओ ने बाबू सिंह की भी करतूतें बताई।
उल्लेखनीय है कि वाराणसी में सीएमओ रहे डाक्टर आरएस वर्मा, बस्ती में डॉ जीपी वर्मा, गोरखपुर में डॉ आरएन मिश्र, मेरठ में डाक्टर प्रेमप्रकाश, वाराणसी में संयुक्त निदेशक डॉ आरएन यादव, श्रावस्ती के सीएमओ डॉ सी प्रकाश, कई जिलों में सीएमओ रहे पटना निवासी डाक्टर विभूति प्रसाद, कन्नौज में एसीएमओ डाक्टर हरिश्चंद्र, सीनियर कंसलटेंट पैथोलॉजी गोरखपुर डाक्टर सिलोइया, बहराइच के डॉ हरि प्रकाश, गोंडा में एसीएमओ डॉ एके श्रीवास्तव, डॉ एसपी पाठक और वाराणसी में रह रहे बलिया के सीएमओ पद से सेवानिवृत्त केएम तिवारी जैसे कई मौजूदा और पूर्व सीएमओ थे, जिनकी पकड़ या तो बिचौलियों के जरिए या सीधे अंटू मिश्र तक थी। यह सभी लोग अंटू के यहां नियमित दरबार लगाते थे और इन सबके माडल लखनऊ के तत्कालीन सीएमओ डाक्टर एके शुक्ला थे। सीबीआइ ने फरवरी में जब इनके यहां एक साथ छापेमारी की तो कई लोग टूट गये। इन लोगों ने ही घोटाले के तौर तरीकों से लेकर हिस्सेदारों तक के नाम बताये। डाक्टर एके शुक्ला ने तो अंटू पर आरोपों की झड़ी लगा दी थी। इस बीच अंटू के खास बिचौलिए वाराणसी के दवा कारोबारी महेंद्र पाण्डेय और 18 जिलों में दवा का काम करने वाले रइस अहमद उर्फ गुड्डू खान का नाम उजागर हुआ, जिनकी संस्तुति पर सीएमओ 15 से 20 लाख रुपये में तैनात किये जाते थे। सीबीआइ ने महेंद्र एवं गुड्डू की भी घेरेबंदी कर दी। तैनाती के बदले में दवा खरीद में लाभ पहुंचाने, फर्जी बिलों को स्वीकृति देने, दवाओं का ठेका दिलवाने में इन सबने पाण्डेय, गुड्डू खान और उनके करीबियों को लाभ मिलने की बात भी सामने आ गई।
कुशवाहा ने बनाया एक और गुट :
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का बंटवारा हुआ तो कुशवाहा ने विधायक रामप्रसाद जायसवाल के नेतृत्व में एक बड़ा गुट खड़ा कर दिया। सर्जिकान मेडिक्वीप के एमडी गिरीश मलिक, सौरभ जैन, गुडडू खान, नरेश ग्रोवर, आरके सिंह और अधिकारियों की एक टीम काम करने लगी। इनके अलावा परदे के पीछे और भी बहुत से लोग सहायक बने। मेरठ में सीएमओ परिवार कल्याण रहे पीपी वर्मा समेत और कई सीएमओ उनके करीब हो गये। अंटू के करीबी सीएमओ ने भी उनसे रिश्ते बना लिए। बताते हैं कि बाद के दिनों में घोटाले में बाबू सिंह का वर्चस्व बढ़ गया। कुशवाहा ने महेंद्र पाण्डेय के प्रतिस्पर्धी मानवेंद्र को भी उभारा।
तैनाती का कनेक्शन तलाश रही सीबीआइ :
सीबीआइ एनआरएचएम घोटाले के दौरान सूबे में तैनात होने वाले सीएमओ और उनको तैनाती दिलाने वाले बिचौलियों का भी कनेक्शन तलाश रही है। सीबीआइ को यह जानकारी मिली है कि कई ऐसे सीएमओ थे जो खुद अपने सहयोगियों और साथियों की पोस्टिंग कराते थे। इन सीएमओ के बारे में सीबीआइ को यह भी खबर है कि मंत्री अंटू मिश्र और कुशवाहा की गैर जानकारी में भी यह घोटाला करके रकम हड़पते थे। इनकी शीघ्र गिरफ्तारी हो सकती है।
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अखिलेश जी के पास अन्टू जैसे लोग कहाँ !
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बुधवार, 23 मई 2012

पत्रकार

ये कैसे कैसे पत्रकार -

(दैनिक  जागरण  की इस  खबर को देखिये खबर और और  चित्र  कहीं का .)

पूर्व प्रधान की हत्या मामले में छह गिरफ्तार

May 23, 07:54 pm
हापुड़, जागरण संवाद केंद्र : दस दिन पहले किठौर रोड पर हुई अतराड़ा के पूर्व प्रधान राकेश त्यागी की हत्या का पुलिस ने बुधवार को खुलासा कर दिया। पुलिस ने छह हत्यारोपियों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से हत्या में प्रयुक्त एक पिस्टल व एक बंदूक के अलावा दो कार भी बरामद की है। राकेश की हत्या पुरानी रंजिश और अपना वर्चस्व कायम करने के लिए की गई थी। इसी रंजिश में मृतक के एक भाई विरेंद्र की छह वर्ष पहले हत्या कर दी गई थी।
गौरतलब है कि अतराड़ा की प्रधान कुसुम त्यागी के पति देवेंद्र पहलवान के भाई और पूर्व प्रधान राकेश त्यागी की कार सवार चार बदमाशों ने किठौर रोड स्थित शिवम कोल्ड स्टोरेज के पास उस समय हत्या कर दी थी। जब वह 13 मई की तड़के साढ़े पांच बजे अपनी मोटरसाइकिल से गांव लौट रहा था। राकेश मेरठ रोड स्थित चामुंडा पेपर मिल में सुपरवाइजर के रूप में कार्यरत था। बदमाश उसकी लाइसेंसी रिवाल्वर भी लूटकर ले गए थे। बुधवार को पुलिस अधीक्षक अब्दुल हमीद ने हत्याकांड का खुलासा करते हुए बताया कि इस मामले में रवि गुर्जर पुत्र जगदीश निवासी गोहरा, दिनेश शर्मा पुत्र मेघनाथ निवासी बवनपुरा खरखौदा, चंद्रप्रकाश त्यागी पुत्र नंदकिशोर व उसके पुत्र अतुल त्यागी, ओमकार निवासी मुरादपुर गजरौला, लाला उर्फ मेहर सिंह निवासी हिम्मतपुर सिंभावली को गिरफ्तार किया गया है। उनके कब्जे से हत्या में प्रयुक्त एक पिस्टल, एक दोनाली बंदूक, कारतूस तथा वैगनआर कार संख्या डीएल 8 सीएनबी 5343 व एक स्कार्पियो कार संख्या यूपी 16 जेड 4019 के अलावा साढ़े 34 हजार रुपये बरामद किए गए है। एसपी के अनुसार राकेश त्यागी की हत्या की योजना अजराड़ा निवासी इंतजार के यहां तैयार की गई थी, जिसमें असौड़ा निवासी रिफाकत भी शामिल था। घटना को अंजाम देने के लिए इंतजार ने शूटरों को तीन लाख रुपये देने का वादा किया, जिसके बाद 12 मई को रिफाकत ने रवि को फोन पर सूचना दी कि राकेश फैक्ट्री में नाइट ड्यूटी पर है और 13 मई की सुबह पांच से छह बजे के बीच मोटरसाइकिल से घर वापस जाएगा। इसके चलते वैगनआर कार में सवार रवि, संजय गुर्जर, फिरोज व राजकुमार त्यागी ने फैक्ट्री से निकलते ही राकेश का पीछा शुरू कर दिया और किठौर रोड पर उसे घेरकर ताबड़तोड़ गोली बरसाकर उसकी हत्या कर दी। इस मामले में रिफाकत के अलावा दिनेश पंडित व अतुल त्यागी ने भी राकेश की रेकी की। हत्या के बाद हमलावर राकेश की मौत की पुष्टि कर उसकी लाइसेंसी रिवाल्वर भी अपने साथ ले गए थे। इस रिवाल्वर को पुलिस अभी तक बरामद नहीं कर पाई है। एसपी ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त कार सात मई को दिल्ली के अपोलो अस्पताल के बाहर से चोरी की गई थी। इस हत्याकांड को खुलासा करने वाली टीम को पुलिस अधीक्षक ने पांच हजार रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि राकेश के छोटे भाई विरेंद्र त्यागी उर्फ बबली की भी 17 अप्रैल 2006 को आवास विकास कालोनी में दिन निकलते ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में भी चंद्रप्रकाश त्यागी व रवि गुर्जर आरोपी हैं। इस हत्याकांड में रवि के अलावा उसके दो भाई संतरपाल और नीरज भी शामिल थे। पुलिस के अनुसार संतरपाल और नीरज इस हत्याकांड की साजिश में भी शामिल हैं लेकिन खुद को बचाने के लिए वह हत्या से एक दिन पहले ही एक मामले में जमानत रद कराकर जेल चले गए थे। हालांकि बाद में उन्होंने फिर से अपनी जमानत करा ली।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

खुले आम खतरे.......

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मऊ में 4 घंटे से ज्यादा चली मुठभेड़, कोतवाल शहीद

सरसेना (मऊ)/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Thursday, April 19, 2012    12:51 AM
Mau the encounter police killed
जिले के चिरैयाकोट थाना क्षेत्र के मठिया गांव के एक घर में छिपे बदमाशों के साथ बुधवार सुबह चार घंटे से अधिक चली मुठभेड़ में शहर कोतवाल शहीद हो गए, जबकि पुलिस ने भाग रहे दो बदमाशों का पीछाकर मार गिराया।

दोनों बदमाश खुद को बचने के लिए जिस घर में घुसे थे, उस परिवार को बंधक बना लिया और पुलिस पर गोलियां बरसाते रहे। इसी दौरान बदमाशों ने गृहस्वामी की हत्या कर दी। बदमाशों में एक धीरज सिंह कुछ समय पहले गोरखपुर स्टेशन से पुलिस कस्टडी से फरार हो गया था। दूसरा बदमाश विकास भी गोरखपुर का रहने वाला है।

जानकारी के अनुसार महराजगंज कारागार में निरुद्ध धीरज सिंह पुत्र इंद्रदेव सिंह उर्फ मुख्तार सिंह निवासी मझनपुर, गाजीपुर मार्च में मऊ से पेशी के बाद महराजगंज लौटते समय गोरखपुर स्टेशन से फरार हो गया था। 16 मार्च को एडीजी रेलवे लखनऊ ने उस पर 15 हजार का इनाम घोषित किया था। उसे पकड़ने के लिए कई थानों की पुलिस लगी हुई थी।

बुधवार दिन में दो बजे जैसे ही शहर कोतवाल गोविंद सिंह और एसओजी प्रभारी रामनरेश यादव को सर्विलांस पर सूचना मिली कि धीरज अपने साथी विकास के साथ चिरैयाकोट थाना क्षेत्र के सरसेना गांव में छिपे हैं, पुलिस मौके पर पहुंच गई। बदमाश बाइक से भागने लगे। पुलिस फिल्मी स्टाइल में बदमाशों के पीछे लग गई। दोनों बदमाश भागते हुए अवस्था इब्राहिम उर्फ मठिया पुरवे गांव में रामजी बरनवाल के घर में घुस गए।

शहर कोतवाल गोविंद सिंह पीछा करते हुए पुलिस टीम के साथ बरनवाल के घर पर पहुंच गए और बदमाशों को बाहर निकालने के लिए ललकारा। इतने में बदमाशों ने मकान मालिक और उनके बच्चों को बंधक बनाकर फायर झोंकना शुुरू कर दिया। इस दौरान गोली लगने से शहर कोतवाल गोविंद सिंह की मौत हो गई, पर सिपाहियों ने मोर्चा संभाले रखा। खबर आला अधिकारियों तक पहुंची तो आसपास के जिलों की फोर्स मौके पर पहुंच गई।

एसपी जोगेंद्र कुमार ने खुद कमान संभाल ली। पांच घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद भाग रहे दोनों बदमाश मार गिराए गए। इससे पहले बदमाशों ने मकान मालिक रामजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मुठभेड़ में एक सिपाही भी घायल हो गया। बदमाश रामजी के परिवार को बंधक बनाकर घटना को अंजाम दे रहे थे।

शहीद इंस्पेक्टर को सरकार देगी दस लाख
पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ में शहीद इंस्पेक्टर गोविंद सिंह को सरकार दस लाख की अनुग्रह राशि देगी। इसके अलावा बदमाशों ने जिस परिवार को बंधक बनाया था, उस परिवार के मुुखिया की मौत हो जाने पर दो लाख की अनुग्रह राशि दी जाएगी। मुठभेड़ में शामिल पुलिस बल को भी सम्मानित किया जाएगा। मऊ केमठिया गांव में पुलिस की एसओजी टीम की बुधवार को बदमाशों से मुठभेड़ हो गई।

बदमाशों ने पास के ही एक घर को बंधक बना लिया था। चार घंटे से अधिक देर तक चली मुठभेड़ में मऊ के सदर कोतवाल गोविन्द सिंह की गोली लगने से मौत हो गई। वहीं बदमाशों ने बंधक परिवार केमुखिया राम जी गुप्ता को भी गोली मार दी। इसकेबाद उनकी भी मौत हो गई। बदमाश इतने दुर्दांत थे कि उन्हें मारने के लिए पुलिस को वाराणसी से स्पेशल कमांडो की टीम भेजनी पड़ी। इसके बाद टीम ने बदमाशों को ढेर कर दिया। बदमाशों की पहचान गोरखपुर के धीरज सिंह और विकास सिंह के रूप में की गई।

शनिवार, 14 अप्रैल 2012


दलित महापुरुषों के नाम पर हुआ घोटाला

Apr 14, 11:25 pm
लखनऊ [जाब्यू]। अम्बेडकर जयंती के मौके पर मायावती की ललकार के बाद समाजवादी पार्टी ने भी आक्रामक रवैया अपना लिया। कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने आनन-फानन में घोषणा कर दी कि बसपा सरकार में दलित महापुरुषों के नाम पर उत्तर प्रदेश में बड़ा घोटाला हुआ है, जिसकी जांच कराई जाएगी। उनकी इसी घोषणा के बाद पार्टी भी सक्रिय हो गई।
पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी की ओर से बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि बसपाराज में 50 हजार करोड़ से ज्यादा पत्थरों पर बर्बाद हुए हैं। मायावती व कांशीराम की मूर्तियों पर छह करोड़ 68 लाख और 60 हाथियों पर 52 करोड़ रूपये खर्च किया गया है। मायावती को बताना होगा कि इससे दलितों का किस प्रकार उद्धार हुआ है। सरकार ने मायाराज के कारनामों की जांच के आदेश दिए हैं और इनमें दोषी पाएं जाने पर सख्त कार्यवाही के भी संकेत दे दिए हैं। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि रही बात धमकी की तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्पष्ट चेतावनी भी दी है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था से किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा और यदि किसी ने शांति भंग की तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
प्रवक्ता ने कहा कि जनता की गाढ़ी कमाई पार्क, स्मारक और अपनी मूर्तियों पर लुटाने के बाद वह अब लूट का हिसाब देने से इतनी भयभीत हैं कि प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कानून व्यवस्था को बिगाड़ देने की बात करने लगी है। यह प्रदेश की जनता के ऐतिहासिक निर्णय का न सिर्फ अपमान है बल्कि अलोकतांत्रिक आचरण है। हकीकत यह है कि समाजवादी पार्टी ने चुनाव के दौरान और बाद में भी यह स्पष्ट कर दिया था कि वह बसपा के महापुरुषों की मूर्तियों से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी। मुख्यमंत्री अखिलेश ने यह जरूर स्पष्ट कर दिया था कि इन पार्को, स्मारकों में अनावश्यक जमीन घेर ली गई है उसका सदुपयोग करने की दृष्टि से वहां बाल एवं महिला अस्पताल तथा स्कूल, कालेज खोले जा सकते हैं। जनहित की योजनाओं से मायावती को क्यों परेशान होना चाहिए।
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भाई शिवपाल यदि मुहँ बंद रखें तो मुख्यमंत्री जी को बड़ी सुविधा होगी ;और बहन जी अपने बडबोलेपन से स्वयं जनता के मन से उतर जायेंगी.
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मूर्तियां तोड़ी तो बिगड़ जाएगी बात : मायावती

लखनऊ/ब्यूरो
Story Update : Sunday, April 15, 2012    12:56 AM
Mayawati warns Akhilesh Yadav from making changes in parks, statues
विधानसभा चुनावों में राज्य की सत्ता खोने के करीब एक महीने बाद बसपा सुप्रीमो मायावती शनिवार को पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नजर आईं।

यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर बाबा साहब की 121वीं जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने नई सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि महापुरुषों के स्मारकों पर किसी तरह के निर्माण वह बर्दाश्त नहीं करेंगी। यदि ऐसा हुआ, तो कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।

उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों एवं अन्य उपेक्षित वर्गों को सम्मानपूर्वक जीने का हक दिलाने के लिए जो संघर्ष किया, वह सदैव हमें प्रेरित करेगा। उन्होंने कहा कि बसपा सरकार द्वारा बनवाए गए महापुरुषों के स्मारकों व पार्कों को नई सरकार अन्य उपयोग में लाने के प्रयास करेगी, तो पूरे देश में समस्या खड़ी हो सकती है।

माया ने कहा कि बसपा शासनकाल में सपा के किसी भी महापुरुष से संबंधित स्मारक, संग्रहालय और पार्क में कोई तोड़फोड़ या निर्माण कार्य नहीं कराया गया। न ही इनकी देखरेख में लगे कर्मचारियों को हटाया गया। बसपा सरकार ने उनकी गरिमा का पूरा-पूरा ध्यान रखा। उम्मीद है कि सपा सरकार इस मामले में बसपा से सीख लेगी।

माया मंत्र
-बसपा सरकार द्वारा बनवाए गए स्मारकों व पार्कों को सपा सरकार ने छुआ तो प्रदेश ही नहीं, देश की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है। स्मारकों व पार्कों को अन्य उपयोग में लाए जाने की खबरें आ रही हैं। राज्य सरकार को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे कानून-व्यवस्था बिगड़े और उस पर संकट आ जाए।
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बाबा साहेब के सपनों को भूल गए हम
प्रकाश अंबेडकर, दलित नेता और बाबा साहेब के पौत्र
First Published:13-04-12 09:40 PM
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सामाजिक शोषण का कोई भी मसला जब हमारे सामने आता है, तो हमें बरबस ही बाबा साहेब अंबेडकर की याद आ जाती है। इस समय नक्सलवाद की समस्या को लेकर देश भर में चर्चा हो रही है। सरकार नक्सलवाद को देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक मानती है। देश में प्रजातंत्र है और इसके माध्यम से हर जगह, हर स्तर पर बदलाव आना चाहिए, खासकर आदिवासी इलाके में और उनके सामाजिक क्षेत्र में, जबकि हकीकत यह है कि बदलाव हमें नहीं दिखते हैं। बदलाव के नाम पर भी आदिवासियों का शोषण हो रहा है। इसी के चलते आदिवासी नक्सली विचारधारा को लेकर हमारी राजनीतिक व्यवस्था से भिड़े हुए हैं। यह टकराव सामाजिक-आर्थिक भेदभाव की वजह से है। हालात यहां तक पहुंचेंगे, इसे बाबा साहेब अच्छी तरह जानते थे, इसलिए उन्होंने संविधान में शिडय़ूल एरिया का उल्लेख किया है, जिसके तहत यह प्रावधान बना कि आदिवासी अपने क्षेत्र के मालिक खुद होंगे। इससे उनका आर्थिक-सामाजिक शोषण नहीं हो पाता। मगर सरकार ने संविधान की उस बात को लागू नहीं किया। झारखंड और छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य बना दिया गया। लेकिन वहां अच्छे प्रशासन की व्यवस्था नहीं है। समाज को विकसित नहीं किया जा रहा है। एक वर्ग ऐसा है, जो हमारी संसदीय प्रणाली को विकसित करने नहीं दे रहा है। बाबा साहेब ने जो बातें कही थीं, उन पर ध्यान दिया ही नहीं गया।
वैसे कहने को आज सभी राजनीतिक दल बाबा साहेब अंबेडकर की बात करते हैं। उनके विचारों को मानने की बात करते हैं। उनकी मूर्तियां लगवाते हैं। लेकिन दरअसल वे खुद को आगे बढ़ाते हैं। बाबा साहेब के नाम पर उन्होंने अपनी छवि ही बनाई है। वरना क्या बात है कि आज भी देश में गरीबों की संख्या बढ़ रही है। उनका विकास नहीं हो रहा है। गरीबी दूर नहीं हुई है। गरीबों को रोटी नहीं मिल रही है। साथ ही दलित या ओबीसी समाज पूछता है, हमारे उत्थान के लिए क्या किया? सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। सरकार कांग्रेस की हो या बीजेपी की हो। उसे अपनी चिंता होती है। समस्या यह भी है कि पूरे देश में कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जिस पर जनता विश्वास कर सके। लोगों को लगे कि वह जनहित में काम कर रहा है।
बाबा साहेब ने कहा था कि धर्म की राजनीति करोगे, तो उससे राष्ट्रीय क्षति होगी। आज चारों तरफ देखि, तो लगता है कि सिर्फ धर्म की ही राजनीति हो रही है। जो धर्म की राजनीति नहीं करते, वे जाति की बात कर रहे हैं। हम बीजेपी की तरफ देखते हैं, तो वह सवर्णो की पार्टी दिखती है। मायावती की पार्टी को दलित पार्टी से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता। कांग्रेस का भी सवर्ण चेहरा दिखता है। जो मुसलमानों को आरक्षण देने की बात न करे, उसे कभी धर्मनिरपेक्ष माना ही नहीं जाएगा। हर पार्टी जाति और धर्म को मिलाकर राजनीति कर रही है। सबसे बड़ी बात है कि राजनीति करने वाले लोग विचार से कट रहे हैं। इसके बिना तो धर्म और जाति की राजनीति हमें खोखला ही बनाएगी। यह राजनीति हमें कहीं ले नहीं जा रही, या शायद सिर्फ पीछे ही ले जा रही है।
बाबा साहेब ने कहा था कि हम जो भी राह अपनाएं, वह संसदीय प्रणाली के भीतर से ही निकलती हो। देश के सारे बड़े फैसले भी संसदीय प्रणाली में ही होने चाहिए। संसदीय प्रणाली के भीतर से जो नेतृत्व सामने आता है, उसे ही हम मानें। लेकिन हर समय ऐसा होता नहीं है। सरकार की कोशिश इसे दरकिनार करने की ही होती है। आजकल जब आम आदमी के उत्थान की बात आती है, तो लोग हमेशा नफा-नुकसान की तरफ देखते हैं। यह अपने आप में बहुत अमानवीय है। मानवीय सोच रखने वाली कोई भी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। बाबा साहेब ने यह भी कहा था कि जो व्यक्ति राजनीति करना चाहे, उसकी समाज में मान्यता या इज्जत होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि राजनीतिक व्यक्ति धर्म, जाति से ऊपर उठे। अक्सर हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमने राजनीतिक एकता कायम कर ली है। लेकिन यह बड़ा सवाल यह है कि क्या हम सामाजिक रूप से एक हुए हैं? हमारे भीतर सामाजिक एकता अब भी कायम नहीं हुई है। सदियों पहले जो सामाजिक विभेद थे, मतभेद थे, वे आज भी कायम हैं। इन्हें पूरी तरह खत्म करने में किसी भी राजनीतिक दल की दिलचस्पी नहीं है।
जहां समाधान काफी आसान हैं, वहां भी बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता। कई समस्याएं ऐसी हैं, जिनके समाधान के लिए इतना ही जरूरी है कि छोटे-छोटे राज्य बनाओ। बड़े राज्यों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं। ऐसे राज्यों में सामाजिक समस्या और सामाजिक सांमजस्य की समस्या नहीं सुलझती। छोटे राज्य होंगे, तो एक-दूसरे से समझने की बात होगी। बड़े राज्यों में यह नहीं हो सकता। अपनेपन की बात नहीं हो सकती। हमें छोटे राज्यों के बारे में सोच साफ रखनी चाहिए थी। मायावती ने छोटे राज्यों के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जरूर, लेकिन बड़ा मुद्दा नहीं बनाया। अगर मायावती इसे बड़ा मुद्दा बनातीं, तो केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ता। लेकिन यह नहीं हुआ।
बाबा साहेब ने नेशनल कैरेक्टर यानी राष्ट्रीय चरित्र की बात की थी। आज हम अपने आपसे भी ईमानदार नहीं है। व्यक्तिगत निष्ठा सबसे बड़ी चीज होती है। लेकिन इसकी चिंता अब किसे है? हम भ्रष्टाचार, घूसखोरी जैसी तमाम बातों को देखते हैं, लेकिन कोई राष्ट्रीय चरित्र को बदलने की बात नहीं करता। राष्ट्रीय चरित्र बनाने की बात नहीं करता। बाबा साहेब ने इसके लिए बहुत बड़ी कोशिश की थी और इसी कोशिश में वह बौद्ध धर्म तक पहुंचे। वह मानते थे कि महात्मा बुद्ध की विचारधारा से राष्ट्रीय चरित्र बन सकता है। इसी से सामाजिक जागरूकता पैदा हो सकती है। एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार, प्रेम आदि सभी चीजें बुद्ध के विचार से हो सकती हैं। लेकिन देश के नेताओं ने जैसे बाबा साहेब के दूसरे विचारों को नहीं अपनाया, वैसे ही इसे भी नहीं अपनाया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

यूपीः मंत्री के भाई, भतीजे ने मड़ई और खपरैल ढहाया


यूपीः मंत्री के भाई, भतीजे ने मड़ई और खपरैल ढहाया

आजमगढ़/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Wednesday, April 11, 2012    1:26 AM
Ministers brother nephew demolished the hut
सिधारी रेलवे स्टेशन के पास मूसेपुर गांव में मंगलवार को दबंगों ने एक परिवार का खपरैल का मकान और मड़ई ढहा दी।

कई और परिवारों के पुश्तैनी मकानों को गिराया जा रहा था कि पुलिस ने पहुंचकर काम रोकवाया। पीड़ित का आरोप है कि यह सब प्रदेश के राज्य के कैबिनेट मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव के भाई और भतीजों ने करवाया है। पिछले तीन दिनों से मंत्री के पट्टीदारों की दबंगई से गांव में दहशत है।

दुर्गा प्रसाद यादव ने कहा कि किसी का घर गिराए जाने का मामला उनके संज्ञान में नहीं है। मूसेपुर गांव में मेरी कोई संपत्ति नहीं है। कौन क्या कर रहा है, उससे मेरा कोई वास्ता नहीं है।

सिधारी स्टेशन के पास मूसेपुर गांव के अराजी नंबर 174 में गांव के कई लोग आबाद हैं। वह करीब सौ साल से मकान बनवाकर रह रहे हैं। इसी नंबर पर कैबिनेट मंत्री के भाई गुरु प्रसाद यादव और भतीजे नरेंद्र और संतोष यादव का भी नाम दर्ज है। गांव वालों का आरोप है कि पिछले तीन दिनों से मंत्री के पट्टीदार अपने हक और हिस्से से अधिक भूभाग पर जबरन कब्जा कर रहे हैं।

मंगलवार को गांव के रामकरन यादव के सौ साल पुराने मकान को अपने हिस्से में बताकर मड़ई और दीवाल ध्वस्त कर दी गई। साथ लगते खपरैल को भी ढहा दिया। इस पर दर्जन भर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र दे कर कब्जा रोकने और जमीन की पैमाइश कराने की गुहार लगाई। दोपहर में लगभग एक बजे सिधारी पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उन्हें रोक।

इस संबंध में सिधारी थानाध्यक्ष ने बताया कि गांव में लोगों के घरों को गिराए जाने की शिकायत मिली थी। इस मामले में कार्रवाई की जा रही है। उधर, नवागत जिलाधिकारी प्रांजल यादव का कहना है कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है। फिलहाल जांच कराई जाएगी।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

बाबा बनाम बलात्कार


बाबा बनाम बलात्कार: कुकुरमुत्तों के तरह पनप रहे हैं भारत में ‘स्वयंभू गुरुजन और स्वामी”

धरा जब जब विकल होती, मुसीबत का समय आता;
कोई किसी रूप में आकर, मानवता की रक्षा करता.”
-शिवनाथ झा।।
नित्यानंद 'बाबा' अपनी फिल्मस्टार शिष्या से मालिश करवाते हुए
आज के परिप्रेक्ष्य में मानवता के रक्षक के रूप में नहीं वरन “भक्षक” के रूप में लोग अवतरित हों रहे हैं विभिन्न नामों से – बाबाओं, विचारकों, प्रचारकों, आध्यात्म गुरुओं, योगियों के रूप में – इतिहास साक्षी है.
स्वतंत्र भारत के जन-मानस के “अंध-विश्वासों” को, विशेषकर महिलाओं को, अपना कवच बनाकर पिछले पांच दशको से भी अधिक से, उनका मानसिक, आर्थिक, शारीरिक और धार्मिक रूप से बलात्कार कर रहे ये “गुरूवर”.
बिग बॉस में स्वामी अग्निवेश और दूसरे कलाकार
सुर्ख़ियों में रहना इन “तथाकथित महात्माओं” का जन्म सिंद्ध अधिकार हों गया है. धन्यवाद के पात्र हैं भारत के लोग, जो मानसिक बिपन्नता के कारण कभी ‘गदगद होकर’ इस बाबाओं और महात्माओं के लिए एक ही समय में ताली भी बजाते हैं और दूसरे ही क्षण अपने गुरुदेव को विभिन्न भारतीय “गालियों” से अलंकृत भी करते हैं.
धीरेंद्र ब्रह्मचारी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी


भारत के विभिन्न जाँच एजेंसियों के आंकड़ों को यदि समग्र रूप में देखा जाये तो स्वतंत्र भारत में स्वयं-भू अवतरित हुए महान ‘ऋषि’ महर्षि महेश योगी से लेकर जनता के आँखों को रंगीन बनाये रखने के लिए गेडुआ वस्त्र धारण करने वाले स्वयं-भू “स्वामी” अग्निवेश तक, सभी तथाकथित बाबाओं ने, महात्माओं ने, आध्यात्म गुरुओं ने, योग गुरुओं ने जो कभी राजनेताओं के दरवाजे पर उनकी ‘परछाई मात्र’ की प्रतीक्षा में सालों-साल गुजार दिए, कई चाय वालों के पैसे आज तक उधार खाते में दर्ज हैं, आज तक़रीबन 29,000 करोड़ से अधिक के संपत्ति और नकद के मालिक हैं.
अपनी शिष्याओं के साथ खरबपति बाबा महेश योगी
भारत के विभिन्न कार्पोरेट घरानों के व्यवसायों में हिस्सेदार हैं, समाचार पात्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों में अपना पैसा निवेश किये हुए हैं, कईयों ने अपने प्रचार-प्रसार की समुचित व्यवस्था हेतु अपना ही टीवी चैनल देश विदेशों में खोल रखा है, कुछ खोल रहें है. आज अप्रक्ष रूप से देश चलाने का दावा भी ठोकते हैं, बड़े-बड़े उद्योग घराने के बहु-बेटियों को “संतान प्राप्ति” के लिए “जल और भभूत” भी देते हैं.
कुल मिलाकर दुकान तो “ताज महल” की तरह चल रही है – समानता एक है: ताज की नीव भी कब्र पर है इनकी दुकाने भी भारतीय जन-मानस के शोषित रक्त पर. अंतर सिर्फ इतना है की ‘ताज’ निर्जीव होने के कारण अपने दर्द को कराह नहीं सकता, भारत के लोगों को ‘कराहने की आदत ही नहीं है’, सभी सजीव होते हुए भी निर्जीव के तरह जीना पसंद करते हैं. बाह रे बाबा, बाह रे तेरा वशीकरण मंत्र का प्रभाव.
महेश योगी से लेकर रवि शंकर तक पिछले तीन दशक में ये “तथाकथित बाबाओं और गुरुदेवों” ने जो जो कारनामे किये वह भारतीय नागरिकों, या यूँ कहें, विश्व भर में “कुख्यात” है. आसमान की ऊंचाई में लोगों ने उन्हें उड़ते भी देखा और समय के अवसान के साथ जमीन पर लोटते हुए भी. आज तक एक बात समझ में नहीं आई और वह यह की अगर इन “बाबाओं और गुरुदेवों” में कोई “दिब्य शक्ति” है तो सभी रामचंद्र परमहंश क्यों ना बने जिन्हें माँ काली स्वयं दर्शन देती थी?
दरअसल, ये सभी तथाकथित बाबा, गुरु या इन्हें जो भी नाम से पुकारा जाये, मूलरूप से शाम-दंड-भेद सभी का एक मिश्रित रूप है जो चाटुकारिता, अवसरवादिता या अन्य उपायों के द्वारा भारतीय जन-मानस की सबसे बड़ी कमजोरियों – चाहे वह आध्यात्म से जुड़ा हों, धर्मं से जुड़ा हों, संप्रदाय से जुड़ा हों, स्वास्थ से जुड़ा हों, का अन्य – को अपनी शक्ति बनाकर उनका मानसिक, आर्थिक, शारीरिक, धार्मिक रूप से बलात्कार करते हैं और प्रक्रिया अनवरत है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारत के लोग अंधविश्वास में इतने गोंते लगा चुके हैं कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. वे मात्र अब “ताली बजाने वाला” ही रह गए हैं – चाहे नौटंकी में बजाएं या खुद नौटंकी करें.
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सत्तर के दशक में जब श्रीमती इंदिरा गाँधी पर “शनि की दशा” मर्रा रहा था, इस अवसर का फायदा उठाया महेश योगी ने. आध्यात्म गुरु के रूप में श्रीमती गाँधी से सानिग्धता बढ़ी. भारत सहित विश्व के अन्य देशो में “शांति दूत वाहक” के रूप में अवतरित हुए. विश्व के देशों का भ्रमण किया और पूरे विश्व में हजारों-हजार “तथाकथित” शांति वाहक बनाये. बाद में महेश जोगी “महर्षि महेश योगी” बन गए. कहा जाता है की मृत्यु के समय उनके और उनके द्वारा स्थापित संस्थान को ४०० मिलियन डोल्लर से अधिक की संपत्ति थी. आज उनके परिवार और उनके लोग “शांति बहक” तो नहीं रहे, अलबत्ता, भारत सहित विश्व के अन्य देशों में विद्यालय, अन्य शैक्षणिक संस्थाने, और विभिन्नप्रकार के व्यावसायिक उद्योगों की स्थापना किये, जिसने स्वास्थ, दवाई, ओर्गानिक फार्म आदि सम्मिल्लित हैं, माला-माल हों गए.
सत्तर के दशक में ही एक और योगराज का आभिर्भाव हुआ. इन्होने भारतीय जन-मानस को आध्यात्म नहीं योग सिखाने का ठेका लिया. चुकि उस वक्त रामदेव की उत्पत्ति नहीं हुई थी, इसलिए उन्होंने सीधा निशाना साधा श्रीमती इंदिरा गाँधी को, माध्यम थे आध्यात्म गुरु महेश योगी और उस योग गुरु का नाम था धीरेन्द्र चौधरी, जो बाद में धीरेन्द्र ब्रम्हचारी के नाम से विख्यात हुए. गीता के ज्ञान से प्रभावित चौधरी कार्तिकेय के शिष्य बने और बनारस के समीप ज्ञान प्राप्त किया. सोवियत रूस से वापस आते ही पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इन्हें इंदिरा गाँधी को योग सिखाने का भार सौंपा था. गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वाह करते जन सन १९७५-७७ में श्रीमती गाँधी पर फिर से शनि-राहु-केतु ग्रहों का प्रभाव उमर पड़ा, धीरेन्द्र चौधरी, जो अब तक धीरेन्द्र ब्रम्हचारी बन गए थे, इंदिरा जी के समीप आते गए और तत्कालीन सत्ता के गलियारे में बहुत ही शसक्त व्यक्ति के रूप में अवतरित हुए. तीस वर्षों के “तथाकथित योग साधना के दौरान, धीरेन्द्र ब्रम्हचारी ना केवल जम्मू में आर्म्स निर्माण करने के उद्योग लगाये (अब सरकार का है) बरन हजारों-हजार एकड़ क्षेत्र में अपना फार्म हाउस बनाया, निजी हेलिकोप्टर रखा, हेली-पैड बनाया, वन-प्राणी का निवास स्थान बनाया, जम्मू में सात-मंजिला मकान बनाया.
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को लोग “फ्लाईंग स्वामी” के नाम से भी जानते थे. अन्वेषण विभाग के लोगों का कहना है की धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अवैध आर्म्स डील के अरितिक्त, कई ऐसे गैर-क़ानूनी क्रिया कलापों में लिप्त थे जो “गुरु” शब्द को कलंकित करता है. बहरहाल, अगर सूर्योदय हुआ तो सूर्यास्त भी होगा. यही प्रकृति का नियम है. धीरेन्द्र चौधरी या धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जीवन एक “विचित्र परिस्थिति” में एक निजी विमान दुर्घटना में हुआ. आज तक भारत के लोग उस गुत्थी को सुलझा नहीं पाए.
इंदिरा गाँधी के प्रधान मत्री काल में ही एक और स्वामी अवतरित हुए जिनका वास्तविक विकास तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वि. नरसिम्हा राव के समय हुआ और वे हैं स्वयं-भू स्वामी चंद्रास्वामी. तंत्र विद्या में महारथ प्राप्त चंद्रास्वामी भारतीय राजनैतिक पट पर एक “लालिमा” के तरहव्तरित हुए, लेकिन मंत्रो का प्रभाव कुछ विपरीत पड़ा उनपर. वैसे कामाख्या, जहाँ लोग तंत्र-मंत्र सिद्ध करते हैं, की यह प्रथा भी है कि “अगर तंत्र-मन्त्रों का प्रयोग जन-हित में ना हों, तो उसका विपरीत प्रभाव तांत्रिक पर पड़ता है”, और कुछ ऐसा ही हुआ चंद्रास्वामी पर. राजीव गाँधी हत्या कांड सहित कई कुख्यात और गैर क़ानूनी धंधों में इनका नाम आया. लन्दन से लेकर विश्व के अनेकों देशों में ठगी – ठगाने के कार्यों में भी पाए गए. वैसे, भारत के कई जाँच पड़ताल करने वाले एजेंसियों के फायलों में इनका नाम अभी भी दर्ज है, लेकिन कुछ दिन पूर्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ मुकदमों में इन्हें मुक्त कर दिया है और इन्हें विदेश जाने पर लगी पावंदी को भी उठा लिया है.
अस्सी के दशक के पूर्वार्ध एक और स्यंभू स्वामी अवतरित हुए – हिन्दू सामाजिक सेवक के रूप में, आर्य समाज के ज्ञान को बढ़ाबा देने. सामाजिक सेवक होना और नाम के आगे ‘स्वामी’, बात्वाही हुई हैसे ‘सोना में सुहागा’. हरियाणा में पहला प्रवेश मारा राजनीति में – नाम है अग्निवेश. सन १९७९-१९८२ तक हरियाणा राज्य में शिक्षा मंत्री रहे. राजनीति में भविष्य को ‘अधर में लटके’ देख एक संस्था खोला और बंधुआ मजदुर पर काम करने लगे, उनके मुक्ति के लिए. यह अलग बात है कि उनके कार्यालय में आज भी १४ साल से काम उम्र के बच्चे कार्य करते हैं अपने पेट कि भूख को मिटाने.
जैसे-जैसे मजदूरों के लिए सरकार कि नीतियाँ बदलती गयी और मजदूरों को उचित मजदूरी के साथ साथ ज्ञान भी मिलने लगा, अग्निवेश साहेब, भष्टाचार के खिलाफ छिड़े जंग में कूद पड़े. कुल मिलाकर अखबार के पन्नों पर, टीवी चैनलों पर आना इन्हें अच्छा लगता है. इतना ही नहीं, स्वामी जी अभी अभी बिग-बॉस में भी मोहतरमाओं के सानिग्धता में तीन दिन बिताये हैं. वैसे देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर है, देखते हैं आगे क्या होता है?
इस दशक के पूर्वार्ध एक और योग गुरु अवतरित हुए भारतवासियों को ज्ञान दें. राम कृष्ण यादव. पहले तो रामदेव बने, फिर स्वामी रामदेव और अब बाबा रामदेव. इसमें कोई संदेह नहीं है कि रामदेव जी ने भारतीय योग ज्ञान को एक नई दिशा दी है, लेकिन अनवरत दिशा-भ्रष्ट होना, आने वाले दिनों के लिए शुभ-संकेत नहीं है. वैसे देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर आ टिकी है. दस वर्षों से भी काम कि अवधि में विश्व भ्रमण करने के अतिरिक भारतीय राज नेताओं, शाशकों, उद्योगपतियों, विशेषकर भारतीय मूल के विदेशों में रह रहे लोगों में इनकी पहुँच प्रशांत महासागर से भी अधिक गहरा है. कहा जाता है कि इनके पास किता धन है या इन्होने कहाँ कहाँ अपने धनों का निवेश किया है, किसी को पता नहीं. आगे समय बताएगा.
अंत में एक और स्वयंभू आध्यात्म गुरु से मिलिए. भारतीय गुरुओं के इतिहास में शायद यह पहले “गुरु” होने जीने नाम के आगे दो बार “श्री” लगता है. नाम है रवि शंकर. आध्यात्म गुरु और भारत के अतिरिक विश्व के लोगों को “जीने का तरीका” बताते हैं और संस्थापक है “आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ौंडेशन” के. महेश योगी के शिष्य हैं, विश्व का कोई ही हिस्सा होगा जहाँ इनका पदार्पण नहीं हुआ हों. चाहे नंदी ग्राम (पश्चिम बंगाल) में निर्मम हत्या हों या दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन, सभी जगह मिलेंगे आपको. लोगों के दिलों-दिमाग पर पड़ने वाले कुश्प्रभावों को अपने “जीने के रहष्य” के माध्यम से सुलझाते है. विश्वभर में कई संस्थाओं के स्वामी हैं. “सफ़ेद वस्त्र” इनका सबसे प्रिय है. बहुत मृदु-भाषी है. लोगों का मानना है कि “इनकी यही मीठी बोली लोगों के लिए प्राण घाती होते हैं”.
“संदेहास्पद” प्रारंभ से रहे हैं इसलिए देश के विभिन्न जांच एजेंसियों कि नजर इनकी हरकतों पर होना लाजिमी है.
सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि आज के ये सभी स्यंभू-गुरु, स्वामी “गुरु-शिष्य” परंपरा में विश्वास नहीं रखते. कोई भी ऐसे गुरु नहीं दीखते जो अपने ज्ञान, साधना को अपने किसी उत्तराधिकारी को सौंपने का प्रयास कर रहे हों. “संस्थाएं” इनके “विरासत” के रूप में पनप रही हैं. अब तय तो भारत के आवाम को करना है कि वह खुद को इस काबिल स्वयं बनाये तो अपना जीवन अपने तरीके से जिए, अपने आध्यात्म के साथ, या फिर समर्पित कर दे स्वयंभू गुरुओं, स्वामियों के समक्ष शोषित होने.