गुरुवार, 19 मई 2011

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे...

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे...
कुछ साल पहले एक फिल्म का गाना हिट हुआ था- मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मजीü, गोरे को भी कहूं काला, काले को भी कहूं गोरा, मेरी मजीü...। ये गाना गोविन्दा की वजह से भले ही चाहे जितना हिट हुआ हो, लेकिन आजकल हमारे नेता भी इस गाने की लाइन पर चल रहे हैं, या दौड़ रहे हैं और हिट भी हो रहे हैं! यानी लगता है नेताओं को अब किसी बात की परवाह नहीं। उन्हें संविधान की चिन्ता नहीं, संसदीय परपंराओं की परवाह नहीं, कानून का कोई डर नहीं, उन्हें लगता है कि बस वो चाहे जो करें, उनकी मजीü। ...और इस तरह के व्यवहार में कोई नेता किसी से कम नहीं है व राजनीतिक दलों की सीमा भी ना तो उन्हें बांधती है और ना ही अलग करती है। हाल में दो घटनाएं जिनसे लगा कि नेताओं को अब किसी बात की परवाह नहीं-

टेलीकॉम घोटाले की जांच कर रही संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के कार्यकाल के आखिरी दिन जो हुआ, वो मुझे ही नहीं, बहुत से लोगों को हैरान करने वाला था। किस तरह संसदीय परपंराओं का मजाक उड़ाया गया, किस तरह तमाशा बनाया गया और किस तरह जांच कमेटी के बहाने से राजनीतिक पाइंट्स स्कोर करने की कोशिश की गई। कमेटी के कार्यकाल की आखिरी बैठक में चैयरमेन व बीजेपी के नेता मुरलीमनोहर जोशी ने टेलीकॉम घोटाले पर अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट रखने और उसे पास करवाने की कोशिश की, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तब वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम पर अंगुली उठाई गई थी, लेकिन रिपोर्ट को संसदीय कमेटी के सामने रखे जाने से पहले ही लीक कर दिया गया, लीक किसने की, किसका फायदा था, ये सब तो जांच का विषय है लेकिन लीक होने से बैठक शुरू होते ही हंगामा हो गया। कांग्रेस और डीएमके के सांसदों ने इस पर काफी ऎतराज जताया।

उन सांसदों का आरोप ये भी था कि जोशी ने कमेटी की रिपोर्ट बनाने में काफी मनमानी की और सदस्यों को अंधेरे में रखा। जोशी भी शायद जानते थे कि रिपोर्ट पर हंगामा होगा और यूपीए के सदस्य कभी उसे पास नहीं होने देंगे क्योंकि उसमें प्रधानमंत्री और चिदंबरम पर अंगुली उठाई गई है। कांग्रेस के लोगों ने कोशिश की कि इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाए, इसके लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के दोनों सदस्यों को भी अपने साथ ले लिया और 21 सदस्यों वाली कमेटी में 11 सदस्य रिपोर्ट के खिलाफ एकजुट हो गए। जोशी को इरादा समझ आ गया था, इसलिए लंच के बाद जब बैठक शुरू हुई और यूपीए के सदस्यों ने हंगामा किया तो जोशी ने तुरंत बैठक को स्थगित करने का ऎलान कर दिया और बाहर चले गए। यूपीए के सदस्यों ने इस हिसाब-किताब को समझा और वो वहीं बैठ गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज को उस बैठक के लिए अस्थायी अध्यक्ष चुना और 11 सदस्यों ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया। सोज ने बैठक के कागज जोशी के दफ्तर को सौंप दिए। जोशी ने अपनी रिपोर्ट 30 अप्रैल को यानी समिति के कार्यकाल के आखिरी दिन लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दी। यानी दोनों गुटों ने अपनी-अपनी मर्जी का काम कर लिया। कांग्रेस ने संसदीय समिति की रिपोर्ट की परवाह नहीं की तो जोशी ने 21 में से 11 सदस्यों की बात नहीं सुनी ताकि दोनों के अपने-अपने पॉलिटिकल पांइट स्कोर हो जाएं। कांग्रेस भी खुश कि उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया जिसमें प्रधानमंत्री का नाम रखा गया था और बीजेपी भी खुश कि पीएम को निशाना बना दिया गया। जबकि कुछ दिन पहले तक वो ही कांग्रेस जोशी का गुणगान कर रही थी, उन्हें विद्वान बता रही थी, राजनीतिक और संसदीय परपंराओं का अनुभवी बता रही थी, उसी कांग्रेस को अब जोशी की रिपोर्ट में राजनीति की बू आने लगी और जो बीजेपी जोशी की अध्यक्षता वाली पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के बजाय संयुक्त संसदीय समिति मांग रही थी, उसे अचानक जोशी में देवदर्शन होने लगे। जिस बीजेपी ने कभी जोशी को पार्टी में ठीक से खड़ा होने की जगह नहीं दी, सबसे सीनियर होने के बावजूद विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया, अब वो ही पार्टी उनकी पीठ थपथपा रही थी। दोनों तरफ के लोगों को इस हंगामे का इनाम भी तुरंत मिल गया। कमेटी के अगले साल के कार्यकाल के लिए बीजेपी ने जोशी को फिर से नामजद कर दिया और हंगामा करने वाले सैफुद्दीन सोज और के. सुब्बाराव को कांग्रेस ने फिर से पीएसी में भेज दिया!

अब दूसरा किस्सा देखिए, गांधीनगर से दिल्ली आने का सपना देखने वाले बीजेपी के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का। उनके लिए तो वैसे भी कहा जाता है कि वो किसी की परवाह नहीं करते, ना संसदीय परपंराओं की, ना कानून की और ना ही अपने नेताओं की, क्योंकि उन्हें लगता है कि गुजरात के साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों की अस्मिता के र$खवाले अकेले वो हैं और गुजरात के लोग ने आजीवन ये जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी है तो वो अब किसी की परवाह नहीं करते। वो बीजेपी के सर्वमान्य नेता माने जाने वाले अटलबिहारी वाजपेयी की परवाह तब नहीं करते थे जब वो प्रधानमंत्री थे और गुजरात के दंगों के बाद वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी थी। खैर बात ताजा घटना की। गुजरात के आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को कभी मोदी बहुत मानते थे लेकिन भट्ट ने मोदी के खिलाफ बोलने की हिम्मत क्या दिखाई, बस मोदी के गुस्से को भट्ट को झेलना पड़ा।

भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि गुजरात दंगों के दिन 27 फरवरी "02 की रात को मुख्यमंत्री निवास में हुई बैठक में वो भी थे जिसमें मोदी ने हिंदू दंगाइयों के खिलाफ नरमी से पेश आने और मुसलमानों को सबक सिखाने की बात कही थी। ये बात कितनी सच है या झूठ, ये देखने का काम तो सुप्रीम कोर्ट व जांच एजेंसिंयों का है, लेकिन तब से बहुत से हिंदूवादी लोग भट्ट के खिलाफ हो गए और उन्हें व उनके परिवार को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। अहमदाबाद के पुलिस स्टेशन ने भट्ट और उनके परिवार को सुरक्षा देने की सिफारिश की थी, लेकिन मोदी सरकार ने भट्ट के पास जो सुरक्षा थी वो भी हटा दी और कहा उन्हें किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत नहीं है। सरकार किसी न किसी बहाने भट्ट को सस्पेंड करने की भी तैयारी में लगी है। यानी साफ है कि मोदी का लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में कोई भरोसा नहीं हैं और ना ही वो किसी भी ऎसे शख्स को स्वीकार करने को तैयार हैं जो उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाता हो। बीजेपी में ऎसे कई नेताओं को तो उन्हें राजनीतिक तौर पर खत्म कर दिया है। राजनीतिक तौर पर मोदी भले ही कुछ भी करें लेकिन क्या मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि उनके राज में हर नागरिक को सुरक्षा मिले, लेकिन मोदी का बर्ताव भी वही मेरी मजीü वाला है।

इतना साफ है कि वो चाहे बीजेपी के मोदी हों या जोशी या फिर कांग्रेस के नेता, इस मुल्क में बहुत दिनों तक किसी की भी ऎसी तानाशाही नहीं चल सकती, जिसमें ये बू आती हो कि मैं वही करूंगा जो मेरी मजीü।
विजय त्रिवेदी
लेखक एनडीटीवी इंडिया में डिप्टी एडिटर हैं (साभार पत्रिका)

सोमवार, 16 मई 2011

वाह उत्तर प्रदेश एक तरफ जान को खतरा दूसरी ओर भ्रष्ट सम्राट का बयान


पूर्व आईएएस ने सरकार से अपनी जान को खतरा बताया

लखनऊ [जाब्यू]। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हरीश चंद्रा ने प्रदेश सरकार से अपनी जान को खतरा बताया है। यूपी काडर के आईएएस रहे हरीश चंद्रा केंद्र में ऊर्जा मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनवादी पार्टी के नाम से एक पार्टी बना ली है। सोमवार को वह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्यपाल से मिलने पहुंचे और बकायदा लिखा-पढ़ी में यह शिकायत दर्ज कराई कि उनकी जान को खतरा है। राज्यपाल को सौंपे गए पत्र में कहा गया है, 'यह सरकार उनकी हत्या कराने के अलावा फर्जी मनगढ़त मामलों में फंसा कर उत्पीड़न कर सकती है।'
पत्र में यह भी कहा गया है कि उप्र सरकार ईमानदार आइएएस, आईपीएस अधिकारियों को हतोत्साहित करने के लिए हर दूसरे-तीसरे महीने तबादले करती रहती है। तबादलों के लिए बने सिविल सर्विस बोर्ड के कोई मायने नहीं रह गए हैं। बार-बार तबादलों से अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी आमजन को नहीं मिल पाता। फूट डाला और राज करो की नीति के तहत उसने प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे को विवादित बना दिया। सरकार की गलत नीतियों की वजह से ही कोर्ट प्रोन्नति में आरक्षण के आदेश को गलत ठहरा दिया है। प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल से सूबे में बसपा के कुशासन पर अंकुश लगाते हुए कठोर कार्रवाई की मांग की।

अन्ना गांधी तो शांति और प्रशांत उनके बंदर

May 17, 01:10 am
मेरठ। अखिल भारतीय लोकमंच के अध्यक्ष अमर सिंह ने कहा कि अन्ना हजारे यदि गांधी हैं तो शांति भूषण और प्रशांत भूषण उनके बंदर हैं। अब तीसरे बंदर की तलाश है। टेप प्रकरण में अभिनेत्री बिपाशा बसु के बाबत अमर ने कहा कि अगर वह बुलातीं तो वह जरूर जाते।
अमर सोमवार को यहां पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने लोकपाल बिल से जुड़ी कमेटी में अधिवक्ता शांति भूषण व प्रशांत भूषण को शामिल करने पर सवाल खड़े किए। कहा कि अगर अन्ना आज के गांधी हैं तो ये दोनों उनके बंदर हैं, फिलहाल तीसरे बंदर का खुलासा नहीं हुआ है।
बिपाशा बसु के बाबत अमर ने कहा कि अगर वह बुलातीं तो वह जरूर जाते। सीडी में आवाज को लेकर स्वयं बिपाशा ने ही चुनौती दी है। सीडी में अपनी आवाज के इस्तेमाल पर अमर का कहना है कि जो भी यह काम कर रहा है, उसके पास उनका वॉयस बैंक है। टेप की असलियत का खुलासा शीघ्र हो जाएगा। सीडी कांड के पीछे मुंबई के एक प्रसिद्ध उद्योगपति का दिमाग है। वह मुझे खत्म करना चाहता है।
यूपी में जनता के पास विकल्प नहीं
अमर सिंह का मानना है कि यूपी में फिलहाल बसपा के मुकाबले कोई विकल्प नहीं है। मुलायम सिंह घर में बैठे हैं। सपा का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि राजनीति चेतना से चलती है। जिसमें चेतना नहीं है, वह जड़ हो जाता है। कांग्रेस भट्टा पारसौल के बहाने उप्र में सिंगूर और नंदीग्राम का ख्वाब देख रही है।

स्वामी अग्निवेश के बयान पर मच गया बवाल

(स्वामी अग्निवेश ने बिल्कुल ठीक कहा है। आस्था का मतलब पाखण्ड तो नहीं होता लम्बे समय से भारत इन पाखण्डियों के चक्कर में दारिद्र्य को झेल रहा है इन पर प्रतिबन्ध लगाकर इनकी सारी सम्पदा राष्ट्र्निर्माण में लगानी चाहिए। यदि ईश्वर कहीं हैं तो वह भी मानव उत्थान ही तो चाहते हैं या अपने उपर अरबों करोड़ों खर्च कराना। यही फजूलखर्ची पाखण्ड को बढ़ावा देती है हर तरह के पाखण्डी को लूट की छूट भी।
आम आदमी जिन्दगी भर इसी प्रकार के पाखण्ड के चक्करों में पड़कर पूरा जीवन बर्वाद कर लेता है, पाखण्डी धताबताकर उसे लूटता रहता है।
डाॅ.लाल रत्नाकर
गाजियाबाद/जौनपुर)

अमर उजाला से साभार -
श्रीनगर।
Story Update : Tuesday, May 17, 2011    2:34 AM
घाटी पहुंचते ही सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश के सुर बदल गए। उन्हें करोड़ों हिन्दुस्तानियों की आस्था का केंद्र अमरनाथ यात्रा धार्मिक छल नजर आने लगी। पीस कान्फ्रेंस में भाग लेने पहुंचे अग्निवेश ने प्रेस से बातचीत में अलगाववादियों के सुर से सुर मिलाते हुए यात्रा को धार्मिक पाखंड और पवित्र गुफा में हिमलिंग निर्माण को प्राकृतिक सिस्टम करार दिया। उन्होंने कहा कि वह ऐसे धर्म पर विश्वास नहीं रखते।

अग्निवेश के इस बयान से हिंदू संगठन भड़क उठे हैं। स्वामी ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पूर्व चेयरमैन राज्यपाल एसके सिन्हा को निशाना बनाते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते शिवलिंग पिघलने के बाद नकली शिवलिंग तैयार करवाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने प्रदर्शनों में मारे गये 118 लोगों की मौत की सीबीआई जांच कराने और फौजी कानून हटाने की भी मांग की। इस बयान से गुस्साए विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, भाजपा, क्रांति दल, शिव सेना आदि संगठनों ने अग्निवेश से माफी मांगने को कहा है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता एमएलसी एडवोकेट रवीन्द्र शर्मा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि कांगे्रस ऐसे बयानों का कभी समर्थन नहीं करती।

विहिप के प्रदेशाध्यक्ष डा. रमाकांत दुबे व बाबा अमरनाथ यात्री न्यास के अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने बयान की कड़ी निंदा की। अग्रवाल ने कहा कि बाबा बर्फानी करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा का प्रतीक हैं। सालाना लाखों लोग दर्शन को आते हैं। इससे अग्निवेश को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। बजरंग दल के प्रदेश संयोजक नंद किशोर मिश्रा ने अग्निवेश को कांग्रेसी और अलगाववादियों का एजेंट बताते हुए कहा कि स्वामी बनकर समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का उन्हें कोई हक नहीं। वे अलगाववादियों की बोली बोलना बंद करें। यात्रा को पाखंड कहने पर माफी मांगे।

शिव सेना बाल ठाकरे के प्रदेश प्रमुख अशोक गुप्ता, हिंदुस्तान शिव सेना के डिपीं कोहली, शिव सेना युनाइटेड के अध्यक्ष राजेश केसरी, क्रांति दल के महासचिव प्रीतम शर्मा और भाजपा के प्रदेश सचिव युद्धवीर सेठी ने भी अग्निवेश के बयान को निंदनीय बताकर उनसे माफी मांगने को कहा है। शिव सेना ने कहा है कि अगर अग्निवेश माफी नहीं मांगेंगे तो उन्हें जम्मू में घुसने नहीं दिया जाएगा।