शनिवार, 14 अप्रैल 2012


दलित महापुरुषों के नाम पर हुआ घोटाला

Apr 14, 11:25 pm
लखनऊ [जाब्यू]। अम्बेडकर जयंती के मौके पर मायावती की ललकार के बाद समाजवादी पार्टी ने भी आक्रामक रवैया अपना लिया। कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने आनन-फानन में घोषणा कर दी कि बसपा सरकार में दलित महापुरुषों के नाम पर उत्तर प्रदेश में बड़ा घोटाला हुआ है, जिसकी जांच कराई जाएगी। उनकी इसी घोषणा के बाद पार्टी भी सक्रिय हो गई।
पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी की ओर से बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि बसपाराज में 50 हजार करोड़ से ज्यादा पत्थरों पर बर्बाद हुए हैं। मायावती व कांशीराम की मूर्तियों पर छह करोड़ 68 लाख और 60 हाथियों पर 52 करोड़ रूपये खर्च किया गया है। मायावती को बताना होगा कि इससे दलितों का किस प्रकार उद्धार हुआ है। सरकार ने मायाराज के कारनामों की जांच के आदेश दिए हैं और इनमें दोषी पाएं जाने पर सख्त कार्यवाही के भी संकेत दे दिए हैं। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि रही बात धमकी की तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्पष्ट चेतावनी भी दी है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था से किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा और यदि किसी ने शांति भंग की तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
प्रवक्ता ने कहा कि जनता की गाढ़ी कमाई पार्क, स्मारक और अपनी मूर्तियों पर लुटाने के बाद वह अब लूट का हिसाब देने से इतनी भयभीत हैं कि प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कानून व्यवस्था को बिगाड़ देने की बात करने लगी है। यह प्रदेश की जनता के ऐतिहासिक निर्णय का न सिर्फ अपमान है बल्कि अलोकतांत्रिक आचरण है। हकीकत यह है कि समाजवादी पार्टी ने चुनाव के दौरान और बाद में भी यह स्पष्ट कर दिया था कि वह बसपा के महापुरुषों की मूर्तियों से कोई छेड़छाड़ नहीं करेगी। मुख्यमंत्री अखिलेश ने यह जरूर स्पष्ट कर दिया था कि इन पार्को, स्मारकों में अनावश्यक जमीन घेर ली गई है उसका सदुपयोग करने की दृष्टि से वहां बाल एवं महिला अस्पताल तथा स्कूल, कालेज खोले जा सकते हैं। जनहित की योजनाओं से मायावती को क्यों परेशान होना चाहिए।
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भाई शिवपाल यदि मुहँ बंद रखें तो मुख्यमंत्री जी को बड़ी सुविधा होगी ;और बहन जी अपने बडबोलेपन से स्वयं जनता के मन से उतर जायेंगी.
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मूर्तियां तोड़ी तो बिगड़ जाएगी बात : मायावती

लखनऊ/ब्यूरो
Story Update : Sunday, April 15, 2012    12:56 AM
Mayawati warns Akhilesh Yadav from making changes in parks, statues
विधानसभा चुनावों में राज्य की सत्ता खोने के करीब एक महीने बाद बसपा सुप्रीमो मायावती शनिवार को पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नजर आईं।

यहां डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर बाबा साहब की 121वीं जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने नई सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि महापुरुषों के स्मारकों पर किसी तरह के निर्माण वह बर्दाश्त नहीं करेंगी। यदि ऐसा हुआ, तो कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।

उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों एवं अन्य उपेक्षित वर्गों को सम्मानपूर्वक जीने का हक दिलाने के लिए जो संघर्ष किया, वह सदैव हमें प्रेरित करेगा। उन्होंने कहा कि बसपा सरकार द्वारा बनवाए गए महापुरुषों के स्मारकों व पार्कों को नई सरकार अन्य उपयोग में लाने के प्रयास करेगी, तो पूरे देश में समस्या खड़ी हो सकती है।

माया ने कहा कि बसपा शासनकाल में सपा के किसी भी महापुरुष से संबंधित स्मारक, संग्रहालय और पार्क में कोई तोड़फोड़ या निर्माण कार्य नहीं कराया गया। न ही इनकी देखरेख में लगे कर्मचारियों को हटाया गया। बसपा सरकार ने उनकी गरिमा का पूरा-पूरा ध्यान रखा। उम्मीद है कि सपा सरकार इस मामले में बसपा से सीख लेगी।

माया मंत्र
-बसपा सरकार द्वारा बनवाए गए स्मारकों व पार्कों को सपा सरकार ने छुआ तो प्रदेश ही नहीं, देश की कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है। स्मारकों व पार्कों को अन्य उपयोग में लाए जाने की खबरें आ रही हैं। राज्य सरकार को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे कानून-व्यवस्था बिगड़े और उस पर संकट आ जाए।
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बाबा साहेब के सपनों को भूल गए हम
प्रकाश अंबेडकर, दलित नेता और बाबा साहेब के पौत्र
First Published:13-04-12 09:40 PM
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सामाजिक शोषण का कोई भी मसला जब हमारे सामने आता है, तो हमें बरबस ही बाबा साहेब अंबेडकर की याद आ जाती है। इस समय नक्सलवाद की समस्या को लेकर देश भर में चर्चा हो रही है। सरकार नक्सलवाद को देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक मानती है। देश में प्रजातंत्र है और इसके माध्यम से हर जगह, हर स्तर पर बदलाव आना चाहिए, खासकर आदिवासी इलाके में और उनके सामाजिक क्षेत्र में, जबकि हकीकत यह है कि बदलाव हमें नहीं दिखते हैं। बदलाव के नाम पर भी आदिवासियों का शोषण हो रहा है। इसी के चलते आदिवासी नक्सली विचारधारा को लेकर हमारी राजनीतिक व्यवस्था से भिड़े हुए हैं। यह टकराव सामाजिक-आर्थिक भेदभाव की वजह से है। हालात यहां तक पहुंचेंगे, इसे बाबा साहेब अच्छी तरह जानते थे, इसलिए उन्होंने संविधान में शिडय़ूल एरिया का उल्लेख किया है, जिसके तहत यह प्रावधान बना कि आदिवासी अपने क्षेत्र के मालिक खुद होंगे। इससे उनका आर्थिक-सामाजिक शोषण नहीं हो पाता। मगर सरकार ने संविधान की उस बात को लागू नहीं किया। झारखंड और छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य बना दिया गया। लेकिन वहां अच्छे प्रशासन की व्यवस्था नहीं है। समाज को विकसित नहीं किया जा रहा है। एक वर्ग ऐसा है, जो हमारी संसदीय प्रणाली को विकसित करने नहीं दे रहा है। बाबा साहेब ने जो बातें कही थीं, उन पर ध्यान दिया ही नहीं गया।
वैसे कहने को आज सभी राजनीतिक दल बाबा साहेब अंबेडकर की बात करते हैं। उनके विचारों को मानने की बात करते हैं। उनकी मूर्तियां लगवाते हैं। लेकिन दरअसल वे खुद को आगे बढ़ाते हैं। बाबा साहेब के नाम पर उन्होंने अपनी छवि ही बनाई है। वरना क्या बात है कि आज भी देश में गरीबों की संख्या बढ़ रही है। उनका विकास नहीं हो रहा है। गरीबी दूर नहीं हुई है। गरीबों को रोटी नहीं मिल रही है। साथ ही दलित या ओबीसी समाज पूछता है, हमारे उत्थान के लिए क्या किया? सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। सरकार कांग्रेस की हो या बीजेपी की हो। उसे अपनी चिंता होती है। समस्या यह भी है कि पूरे देश में कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जिस पर जनता विश्वास कर सके। लोगों को लगे कि वह जनहित में काम कर रहा है।
बाबा साहेब ने कहा था कि धर्म की राजनीति करोगे, तो उससे राष्ट्रीय क्षति होगी। आज चारों तरफ देखि, तो लगता है कि सिर्फ धर्म की ही राजनीति हो रही है। जो धर्म की राजनीति नहीं करते, वे जाति की बात कर रहे हैं। हम बीजेपी की तरफ देखते हैं, तो वह सवर्णो की पार्टी दिखती है। मायावती की पार्टी को दलित पार्टी से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता। कांग्रेस का भी सवर्ण चेहरा दिखता है। जो मुसलमानों को आरक्षण देने की बात न करे, उसे कभी धर्मनिरपेक्ष माना ही नहीं जाएगा। हर पार्टी जाति और धर्म को मिलाकर राजनीति कर रही है। सबसे बड़ी बात है कि राजनीति करने वाले लोग विचार से कट रहे हैं। इसके बिना तो धर्म और जाति की राजनीति हमें खोखला ही बनाएगी। यह राजनीति हमें कहीं ले नहीं जा रही, या शायद सिर्फ पीछे ही ले जा रही है।
बाबा साहेब ने कहा था कि हम जो भी राह अपनाएं, वह संसदीय प्रणाली के भीतर से ही निकलती हो। देश के सारे बड़े फैसले भी संसदीय प्रणाली में ही होने चाहिए। संसदीय प्रणाली के भीतर से जो नेतृत्व सामने आता है, उसे ही हम मानें। लेकिन हर समय ऐसा होता नहीं है। सरकार की कोशिश इसे दरकिनार करने की ही होती है। आजकल जब आम आदमी के उत्थान की बात आती है, तो लोग हमेशा नफा-नुकसान की तरफ देखते हैं। यह अपने आप में बहुत अमानवीय है। मानवीय सोच रखने वाली कोई भी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। बाबा साहेब ने यह भी कहा था कि जो व्यक्ति राजनीति करना चाहे, उसकी समाज में मान्यता या इज्जत होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि राजनीतिक व्यक्ति धर्म, जाति से ऊपर उठे। अक्सर हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमने राजनीतिक एकता कायम कर ली है। लेकिन यह बड़ा सवाल यह है कि क्या हम सामाजिक रूप से एक हुए हैं? हमारे भीतर सामाजिक एकता अब भी कायम नहीं हुई है। सदियों पहले जो सामाजिक विभेद थे, मतभेद थे, वे आज भी कायम हैं। इन्हें पूरी तरह खत्म करने में किसी भी राजनीतिक दल की दिलचस्पी नहीं है।
जहां समाधान काफी आसान हैं, वहां भी बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता। कई समस्याएं ऐसी हैं, जिनके समाधान के लिए इतना ही जरूरी है कि छोटे-छोटे राज्य बनाओ। बड़े राज्यों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं। ऐसे राज्यों में सामाजिक समस्या और सामाजिक सांमजस्य की समस्या नहीं सुलझती। छोटे राज्य होंगे, तो एक-दूसरे से समझने की बात होगी। बड़े राज्यों में यह नहीं हो सकता। अपनेपन की बात नहीं हो सकती। हमें छोटे राज्यों के बारे में सोच साफ रखनी चाहिए थी। मायावती ने छोटे राज्यों के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जरूर, लेकिन बड़ा मुद्दा नहीं बनाया। अगर मायावती इसे बड़ा मुद्दा बनातीं, तो केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ता। लेकिन यह नहीं हुआ।
बाबा साहेब ने नेशनल कैरेक्टर यानी राष्ट्रीय चरित्र की बात की थी। आज हम अपने आपसे भी ईमानदार नहीं है। व्यक्तिगत निष्ठा सबसे बड़ी चीज होती है। लेकिन इसकी चिंता अब किसे है? हम भ्रष्टाचार, घूसखोरी जैसी तमाम बातों को देखते हैं, लेकिन कोई राष्ट्रीय चरित्र को बदलने की बात नहीं करता। राष्ट्रीय चरित्र बनाने की बात नहीं करता। बाबा साहेब ने इसके लिए बहुत बड़ी कोशिश की थी और इसी कोशिश में वह बौद्ध धर्म तक पहुंचे। वह मानते थे कि महात्मा बुद्ध की विचारधारा से राष्ट्रीय चरित्र बन सकता है। इसी से सामाजिक जागरूकता पैदा हो सकती है। एक-दूसरे के प्रति अच्छे विचार, प्रेम आदि सभी चीजें बुद्ध के विचार से हो सकती हैं। लेकिन देश के नेताओं ने जैसे बाबा साहेब के दूसरे विचारों को नहीं अपनाया, वैसे ही इसे भी नहीं अपनाया।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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