रविवार, 18 दिसंबर 2011

अजित सिंह का सत्ता प्रेम और जाट वोट की कीमत

नागरिक उड्डयन मंत्री बने अजित सिंह

Dec 18, 12:04 pm
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने रविवार को चौथी बार केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली। उत्तार प्रदेश में कांग्रेस-रालोद के अच्छे प्रदर्शन के दबाव और बेहद नाजुक दौर से गुजर रहे नागरिक उड्डयन मंत्रालय की दोहरी चुनौती से अजित सिंह को एक साथ जूझना होगा। राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद अजित सिंह उत्तार प्रदेश की मायावती सरकार पर बरसे और कहा कि अब उत्तार प्रदेश की जनता को कांग्रेस-रालोद गठबंधन के रूप में स्पष्ट विकल्प मिल गया है।
मुख्य तौर पर उत्तार प्रदेश में कांग्रेस की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए हुए संप्रग-दो सरकार के तीसरे मंत्रिमंडल विस्तार के समय राहुल गांधी भी अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी के साथ मौजूद थे। अजित सिंह के मंत्री बनने के बाद उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी समेत वहां मौजूद वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें बधाई दी।
मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या अब 77 हो गई है, जिसमें अजित सिंह 33वें कैबिनेट मंत्री होंगे। पश्चिम उत्तार प्रदेश के इस 72 वर्षीय जाट दिग्गज के कांग्रेस के साथ गठजोड़ के बाद अब संप्रग के सदस्यों की संख्या 272 से बढ़कर 277 हो गई है। चौैधरी अजित सिंह की सबसे बड़ी खासियत रही है कि वह केंद्र और उत्तार प्रदेश के सभी प्रमुख दलों के साथ रह चुके हैं। कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा जैसे दलों के साथ उनका गठबंधन समय-समय पर बनता-बिगड़ता रहा।
मेरठ की बागपत सीट से छह बार सांसद रहे अजित सिंह सबसे पहले वीपी. सिंह की जनता दल सरकार में 1989 से 1990 तक वह उद्योग मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे। दूसरी बार कांग्रेस की पीवी. नरसिंह राव सरकार में फरवरी 1995 से मई 1996 तक खाद्य मंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था। फिर कांग्रेस से नाता तोड़कर 2001 से 2003 तक भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार में कृषि मंत्री रहे। 2009 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था।
अब उत्तार प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले अजित का कांग्रेस के साथ गठजोड़ पश्चिमी उत्तार प्रदेश में खासा अहम माना जा रहा है। इस गठजोड़ से सबसे ज्यादा खतरा पश्चिमी उत्तार प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा भी, 'उत्तार प्रदेश हमारी प्राथमिकता है।

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

हत्यारे

(हिंदुस्तान हिंदी से साभार )

बसपा सांसद धनंजय सिंह न्यायिक हिरासत में
जौनपुर, एजेंसी
First Published:12-12-11 08:56 PM
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उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में पिछले वर्ष हुई दोहरी हत्या के एक मामले में रविवार को लखनऊ में गिरफ्तार जौनपुर लोकसभा सीट से बसपा सांसद धनंजय सिंह को सोमवार को जिले की एक अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है और हिरासत के दौरान संसद के चालू सत्र में शामिल होने की उनकी अपील भी खारिज कर दी है।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, धनंजय सिंह को आज दोपहर बाद जिले के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अशरफ अंसारी की अदालत में पेश किया गया, जिन्होंने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजे जाने का आदेश देते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिये 23 दिसम्बर की तारीख तय कर दी है।
बसपा सांसद सिंह को जिले के केराकत थाना क्षेत्र में पिछले वर्ष एक अप्रैल को हुई दो व्यक्तियों ठेकेदार संजय निषाद और चाय विक्रेता नंदलाल की हत्या के मामले में कल राजधानी लखनऊ के बहुखंडी विधायक निवास स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था और देर रात जौनपुर लाकर पुलिस अभिरक्षा में रखा गया था।
अदालत में पेशी के दौरान बसपा सांसद सिंह ने संसदीय नियमों का हवाला देते हुए लोकसभा के अध्यक्ष की अनुमति के बिना उनकी गिरफ्तारी को अनुचित बताया और संसद के चालू सत्र में भाग लेने की अनुमति दिये जाने की अपील की, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

क्यों अमर सिंह को ही जेल जाना पड़ रहा है 'रेवती रमण सिंह के जेल जाने के दिन कब आयेंगे'

अमर ‌को झटका, जमानत याचिका खारिज

नई दिल्ली।
Story Update : Wednesday, September 28, 2011    5:39 PM
नोट के बदले वोट मामले में आरोपी पूर्व सपा नेता अमर सिंह फिर से तिहाड़ जेल की हवा खाएंगे। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने बुधवार को उनकी अंतरिम और नियमित दोनों जमानत याचिकाएं खारिज कर दी। अमर सिंह इस समय एम्स में इलाज करा रहे हैं।

अदालत के इस फैसले के बाद अब पूर्व सपा नेता एम्स में भी न्यायिक हिरासत में रहेंगे। अस्पताल से छुट्टी मिलने पर अमर सिंह सीधे तिहाड़ जेल जाएंगे। अदालत ने कहा कि जो सबूत मिले हैं उससे पता चलता है कि अमर सिंह ने इस कांड में अहम भूमिका निभाई। विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने अमर सिंह की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि कहा कि अमर सिंह अपना इलाज करा रहे हैं। यह एम्स पर निर्भर है कि वह इलाज के लिए कितने दिन तक उनको अस्पताल में रखता है।

इससे पहले कोर्ट ने अमर सिंह की अंतरिम जमानत 28 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी थी। गुर्दा रोग से पीड़ित सिंह ने ईलाज के लिए विदेश जाने की अनुमति देने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया था जिसे उन्होंने बाद में वापस ले लिया। सिंह को नोट के बदले वोट मामले में छह सितंबर को गिरफ्तार कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। जेल में तबीयत खराब होने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था।

अमर सिंह को फिर जाना होगा तिहाड़

नई दिल्ली।
Story Update : Thursday, September 29, 2011    3:28 AM
कैश फॉर वोट कांड में गिरफ्तार राज्यसभा सांसद अमर सिंह को फिर तिहाड़ जेल जाना पड़ेगा। अदालत ने अमर सिंह की नियमित और अंतरिम जमानत की याचिकाएं खारिज कर दी हैं। डॉक्टरों की निगरानी में वे तब तक एम्स में रह सकते हैं, जब तक ठीक नहीं हो जाते। तबीयत सामान्य होने पर उन्हें फिर से तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया गया है।

इसका असर भारतीय समाज पर बहुत गहरा पड़ा
तीस हजारी स्थित विशेष जज संगीता ढींगरा सहगल की अदालत ने एम्स के डॉक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला सुनाया है। अदालत ने यह भी कहा कि दाखिल आरोपपत्र से प्रथम दृष्ट्या लगता है कि आरोपी ने जो किया, उससे संसदीय व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा और भारतीय गणतंत्र का भी मजाक बना। मामले में आरोपी की प्रमुख भूमिका है। अपराध की श्रेणी और गंभीरता को भी नहीं नकारा जा सकता है। यही नहीं संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी इस कृत्य से निराशा हुई है। इसका असर भारतीय समाज पर बहुत गहरा पड़ा है।

छह सितंबर को गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजा गया
जमानत की अर्जियां खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि एम्स के डाक्टरों की 26 सितंबर की रिपोर्ट के मुताबिक अमर सिंह का स्वास्थ्य स्थिर है। आगे यह एम्स के डॉक्टर ही तय करेंगे कि आरोपी को कब तक अस्पताल में रखे जाने की जरूरत है। तिहाड़ जेल अधीक्षक को आदेश दिया गया है कि डॉक्टरों की रिपोर्ट के आधार पर अमर सिंह को जेल ले जाया जाए। मालूम हो कि अमर सिंह को छह सितंबर को गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजा गया था।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

'जश्न की लूट'

मोहन लाल शर्मा

देर शाम का वक्त था, घड़ी की सुईयां पौने नौ बजा रहीं थी और जगह थी - दिल्ली का इंडिया गेट. मौका था अन्ना हज़ारे के अनशन ख़त्म होने का...
अन्ना टीम के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने समर्थकों को शाम छह बजे इंडिया गेट पर जुटने का आह्वान किया था. इसके बाद दसियों हज़ार लोग वहाँ पहुँच गए.
यूँ तो हर रविवार को ही इंडिया गेट पर दिल्ली की जनता चाट-पकौड़े, गोलगप्पे और भेल-पूड़ी खाने के लिए जुटती है, पर इस रविवार की बात कुछ अलग ही थी.
हाथों में तिरंगा लहराते लोग अन्ना और जनलोकपाल विधेयक के पक्ष में नारे लगा रहे थे. कुछ मिठाइयाँ बाँट रहे थे, तो कई ढ़ोल नगाड़ों की थाप पर जमकर नाच रहे थे.
हाथों में मोमबत्ती लिए लोगों की टोलियां आ रहीं थी.
बच्चे, बूढ़े और जवान दस-दस रूपए में दोनों गालों पर पेंट से तिरंगा झंड़ा बनवा रहे थे.
पानी बेचने वाले की स्टॉल पर अचानक कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. बीस पच्चीस की तादाद में लोग उसकी दुकान से पानी की बोतलें लूट के भागने लगे. पहले एक आदमी ने बोतल निकाली, फिर दूसरे ने, फिर तीसरे ने... इसके बाद तो ये सिलसिला उस समय तक चलता रहा जब तक उसकी पूरी दुकान ही लुट नही गई. पांच मिनट के भीतर ही बोतलों की सारी पेटियाँ गायब हो चुकी थी.
दस रूपए में "मैं अन्ना हूँ" की टोपी धड़ल्ले से बिक रही थी. हर तरफ़ उत्सव जैसा ही माहौल था.
इसी माहौल में जोश से लबरेज़ परिवार दूधिया रोशनी में नहाए इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिंचा रहे थे.
दूर के दृश्यों की तस्वीरें कैद करने के लिए टीवी चैनलों के कैमरे क्रेन पर तैनात थे और इन्हीं के ज़रिए सारे टीवी चैनल जश्न के इस मज़र का सीधा प्रसारण कर रहे थे.

लुट गई दुकान 

पुलिस का घेरा काफ़ी मज़बूत था. चप्पे- चप्पे पर पुलिस भी मौजूद थी. लेकिन पुलिस लोगों के इस जश्न में कोई बाधा नही पहुँचाना चाहती थी.
सब कुछ शांतिपूर्ण था. साढ़ै नौ बज़े के आसपास मैने देखा कि एक पानी बेचने वाले के स्टॉल पर अचानक कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. बीस पच्चीस की तादाद में लोग दुकान से पानी की बोतलें लूट के भागने लगे.
पहले एक आदमी ने बोतल निकाली, फिर दूसरे ने, फिर तीसरे ने... इसके बाद तो ये सिलसिला उस समय तक चलता रहा जब तक उसकी पूरी दुकान ही लुट नही गई.
पांच मिनट के भीतर ही बोतलों की सारी पेटियाँ गायब हो चुकी थी.
उस दुकानदार ने शुरुआत में रोकने की कोशिश की, पर चाह कर भी वो कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि उसके पास इसे देखते रहने के अलावा कोई और विकल्प भी नही था.
पानी की बोतल लूट के भाग रहे एक लड़के को मैने रोका और उससे पूछा कि दुकान क्यों लूट रहे हो, उसने जवाब दिया कि सब तो यही कर रहे हैं ना, तो मैंने क्या ग़लत किया.
इस घटना पर न तो किसी टीवी चैनल के संवाददाता की नज़र गई और न ही किसी पुलिस वाले की.
ये सब देखने के बाद मैंने इंडिया गेट के एक कोने में अंधेरे में बैठी भुट्टे सेक रही एक अधेड़ उम्र की महिला की ओर रुख़ किया.
उससे मैंने पूछा कि सब लोग तुम्हारे भुट्टे के पैसे देते हैं?
तो उसने कहा, "नहीं साहब आज तो तमाम लोग ऐसे ही थे, जिन्होंने भुट्टे खाए और बिना पैसे दिए ही चले गए."
भले ही इन्हें लोग छोटी घटनाएं कहेंगे ,पर मेरे दिमाग में इन घटनाओं से कुछ सवाल पैदा हुए...कि जश्न किसका औऱ किसके लिए...क्या ये ही आज़ादी की दूसरी लड़ाई है... क्या इसी के लिए अन्ना अनशन पर बैठे थे ?
    (साभार बीबीसी से साभार)

शनिवार, 13 अगस्त 2011

आग लगाकर दे दी जान


तंगी झेल रहा था, आग लगाकर दे दी जान

Aug 14, 02:21 am
अलीगढ़ : आर्थिक तंगी से परेशान चल रहे अधेड़ ने खुद पर मिंट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। शनिवार सुबह घायल ने मेडिकल कालेज में दम तोड़ दिया।
देहली गेट क्षेत्र के महफूज नगर निवासी सलीम (50) पुत्र इदे खां ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर शुक्रवार को दिन में तकरीबन तीन बजे खुद को आग लगाई थी। गंभीर हालत में परिजनों ने उसे मेडिकल कालेज में भर्ती कराया था।

गुरुवार, 19 मई 2011

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे...

मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे...
कुछ साल पहले एक फिल्म का गाना हिट हुआ था- मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं, मेरी मजीü, गोरे को भी कहूं काला, काले को भी कहूं गोरा, मेरी मजीü...। ये गाना गोविन्दा की वजह से भले ही चाहे जितना हिट हुआ हो, लेकिन आजकल हमारे नेता भी इस गाने की लाइन पर चल रहे हैं, या दौड़ रहे हैं और हिट भी हो रहे हैं! यानी लगता है नेताओं को अब किसी बात की परवाह नहीं। उन्हें संविधान की चिन्ता नहीं, संसदीय परपंराओं की परवाह नहीं, कानून का कोई डर नहीं, उन्हें लगता है कि बस वो चाहे जो करें, उनकी मजीü। ...और इस तरह के व्यवहार में कोई नेता किसी से कम नहीं है व राजनीतिक दलों की सीमा भी ना तो उन्हें बांधती है और ना ही अलग करती है। हाल में दो घटनाएं जिनसे लगा कि नेताओं को अब किसी बात की परवाह नहीं-

टेलीकॉम घोटाले की जांच कर रही संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के कार्यकाल के आखिरी दिन जो हुआ, वो मुझे ही नहीं, बहुत से लोगों को हैरान करने वाला था। किस तरह संसदीय परपंराओं का मजाक उड़ाया गया, किस तरह तमाशा बनाया गया और किस तरह जांच कमेटी के बहाने से राजनीतिक पाइंट्स स्कोर करने की कोशिश की गई। कमेटी के कार्यकाल की आखिरी बैठक में चैयरमेन व बीजेपी के नेता मुरलीमनोहर जोशी ने टेलीकॉम घोटाले पर अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट रखने और उसे पास करवाने की कोशिश की, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तब वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम पर अंगुली उठाई गई थी, लेकिन रिपोर्ट को संसदीय कमेटी के सामने रखे जाने से पहले ही लीक कर दिया गया, लीक किसने की, किसका फायदा था, ये सब तो जांच का विषय है लेकिन लीक होने से बैठक शुरू होते ही हंगामा हो गया। कांग्रेस और डीएमके के सांसदों ने इस पर काफी ऎतराज जताया।

उन सांसदों का आरोप ये भी था कि जोशी ने कमेटी की रिपोर्ट बनाने में काफी मनमानी की और सदस्यों को अंधेरे में रखा। जोशी भी शायद जानते थे कि रिपोर्ट पर हंगामा होगा और यूपीए के सदस्य कभी उसे पास नहीं होने देंगे क्योंकि उसमें प्रधानमंत्री और चिदंबरम पर अंगुली उठाई गई है। कांग्रेस के लोगों ने कोशिश की कि इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाए, इसके लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के दोनों सदस्यों को भी अपने साथ ले लिया और 21 सदस्यों वाली कमेटी में 11 सदस्य रिपोर्ट के खिलाफ एकजुट हो गए। जोशी को इरादा समझ आ गया था, इसलिए लंच के बाद जब बैठक शुरू हुई और यूपीए के सदस्यों ने हंगामा किया तो जोशी ने तुरंत बैठक को स्थगित करने का ऎलान कर दिया और बाहर चले गए। यूपीए के सदस्यों ने इस हिसाब-किताब को समझा और वो वहीं बैठ गए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैफुद्दीन सोज को उस बैठक के लिए अस्थायी अध्यक्ष चुना और 11 सदस्यों ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया। सोज ने बैठक के कागज जोशी के दफ्तर को सौंप दिए। जोशी ने अपनी रिपोर्ट 30 अप्रैल को यानी समिति के कार्यकाल के आखिरी दिन लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दी। यानी दोनों गुटों ने अपनी-अपनी मर्जी का काम कर लिया। कांग्रेस ने संसदीय समिति की रिपोर्ट की परवाह नहीं की तो जोशी ने 21 में से 11 सदस्यों की बात नहीं सुनी ताकि दोनों के अपने-अपने पॉलिटिकल पांइट स्कोर हो जाएं। कांग्रेस भी खुश कि उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया जिसमें प्रधानमंत्री का नाम रखा गया था और बीजेपी भी खुश कि पीएम को निशाना बना दिया गया। जबकि कुछ दिन पहले तक वो ही कांग्रेस जोशी का गुणगान कर रही थी, उन्हें विद्वान बता रही थी, राजनीतिक और संसदीय परपंराओं का अनुभवी बता रही थी, उसी कांग्रेस को अब जोशी की रिपोर्ट में राजनीति की बू आने लगी और जो बीजेपी जोशी की अध्यक्षता वाली पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के बजाय संयुक्त संसदीय समिति मांग रही थी, उसे अचानक जोशी में देवदर्शन होने लगे। जिस बीजेपी ने कभी जोशी को पार्टी में ठीक से खड़ा होने की जगह नहीं दी, सबसे सीनियर होने के बावजूद विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया, अब वो ही पार्टी उनकी पीठ थपथपा रही थी। दोनों तरफ के लोगों को इस हंगामे का इनाम भी तुरंत मिल गया। कमेटी के अगले साल के कार्यकाल के लिए बीजेपी ने जोशी को फिर से नामजद कर दिया और हंगामा करने वाले सैफुद्दीन सोज और के. सुब्बाराव को कांग्रेस ने फिर से पीएसी में भेज दिया!

अब दूसरा किस्सा देखिए, गांधीनगर से दिल्ली आने का सपना देखने वाले बीजेपी के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का। उनके लिए तो वैसे भी कहा जाता है कि वो किसी की परवाह नहीं करते, ना संसदीय परपंराओं की, ना कानून की और ना ही अपने नेताओं की, क्योंकि उन्हें लगता है कि गुजरात के साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों की अस्मिता के र$खवाले अकेले वो हैं और गुजरात के लोग ने आजीवन ये जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी है तो वो अब किसी की परवाह नहीं करते। वो बीजेपी के सर्वमान्य नेता माने जाने वाले अटलबिहारी वाजपेयी की परवाह तब नहीं करते थे जब वो प्रधानमंत्री थे और गुजरात के दंगों के बाद वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी थी। खैर बात ताजा घटना की। गुजरात के आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को कभी मोदी बहुत मानते थे लेकिन भट्ट ने मोदी के खिलाफ बोलने की हिम्मत क्या दिखाई, बस मोदी के गुस्से को भट्ट को झेलना पड़ा।

भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि गुजरात दंगों के दिन 27 फरवरी "02 की रात को मुख्यमंत्री निवास में हुई बैठक में वो भी थे जिसमें मोदी ने हिंदू दंगाइयों के खिलाफ नरमी से पेश आने और मुसलमानों को सबक सिखाने की बात कही थी। ये बात कितनी सच है या झूठ, ये देखने का काम तो सुप्रीम कोर्ट व जांच एजेंसिंयों का है, लेकिन तब से बहुत से हिंदूवादी लोग भट्ट के खिलाफ हो गए और उन्हें व उनके परिवार को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। अहमदाबाद के पुलिस स्टेशन ने भट्ट और उनके परिवार को सुरक्षा देने की सिफारिश की थी, लेकिन मोदी सरकार ने भट्ट के पास जो सुरक्षा थी वो भी हटा दी और कहा उन्हें किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत नहीं है। सरकार किसी न किसी बहाने भट्ट को सस्पेंड करने की भी तैयारी में लगी है। यानी साफ है कि मोदी का लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में कोई भरोसा नहीं हैं और ना ही वो किसी भी ऎसे शख्स को स्वीकार करने को तैयार हैं जो उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाता हो। बीजेपी में ऎसे कई नेताओं को तो उन्हें राजनीतिक तौर पर खत्म कर दिया है। राजनीतिक तौर पर मोदी भले ही कुछ भी करें लेकिन क्या मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि उनके राज में हर नागरिक को सुरक्षा मिले, लेकिन मोदी का बर्ताव भी वही मेरी मजीü वाला है।

इतना साफ है कि वो चाहे बीजेपी के मोदी हों या जोशी या फिर कांग्रेस के नेता, इस मुल्क में बहुत दिनों तक किसी की भी ऎसी तानाशाही नहीं चल सकती, जिसमें ये बू आती हो कि मैं वही करूंगा जो मेरी मजीü।
विजय त्रिवेदी
लेखक एनडीटीवी इंडिया में डिप्टी एडिटर हैं (साभार पत्रिका)

सोमवार, 16 मई 2011

वाह उत्तर प्रदेश एक तरफ जान को खतरा दूसरी ओर भ्रष्ट सम्राट का बयान


पूर्व आईएएस ने सरकार से अपनी जान को खतरा बताया

लखनऊ [जाब्यू]। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हरीश चंद्रा ने प्रदेश सरकार से अपनी जान को खतरा बताया है। यूपी काडर के आईएएस रहे हरीश चंद्रा केंद्र में ऊर्जा मंत्रालय के सचिव रह चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनवादी पार्टी के नाम से एक पार्टी बना ली है। सोमवार को वह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्यपाल से मिलने पहुंचे और बकायदा लिखा-पढ़ी में यह शिकायत दर्ज कराई कि उनकी जान को खतरा है। राज्यपाल को सौंपे गए पत्र में कहा गया है, 'यह सरकार उनकी हत्या कराने के अलावा फर्जी मनगढ़त मामलों में फंसा कर उत्पीड़न कर सकती है।'
पत्र में यह भी कहा गया है कि उप्र सरकार ईमानदार आइएएस, आईपीएस अधिकारियों को हतोत्साहित करने के लिए हर दूसरे-तीसरे महीने तबादले करती रहती है। तबादलों के लिए बने सिविल सर्विस बोर्ड के कोई मायने नहीं रह गए हैं। बार-बार तबादलों से अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी आमजन को नहीं मिल पाता। फूट डाला और राज करो की नीति के तहत उसने प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे को विवादित बना दिया। सरकार की गलत नीतियों की वजह से ही कोर्ट प्रोन्नति में आरक्षण के आदेश को गलत ठहरा दिया है। प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल से सूबे में बसपा के कुशासन पर अंकुश लगाते हुए कठोर कार्रवाई की मांग की।

अन्ना गांधी तो शांति और प्रशांत उनके बंदर

May 17, 01:10 am
मेरठ। अखिल भारतीय लोकमंच के अध्यक्ष अमर सिंह ने कहा कि अन्ना हजारे यदि गांधी हैं तो शांति भूषण और प्रशांत भूषण उनके बंदर हैं। अब तीसरे बंदर की तलाश है। टेप प्रकरण में अभिनेत्री बिपाशा बसु के बाबत अमर ने कहा कि अगर वह बुलातीं तो वह जरूर जाते।
अमर सोमवार को यहां पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने लोकपाल बिल से जुड़ी कमेटी में अधिवक्ता शांति भूषण व प्रशांत भूषण को शामिल करने पर सवाल खड़े किए। कहा कि अगर अन्ना आज के गांधी हैं तो ये दोनों उनके बंदर हैं, फिलहाल तीसरे बंदर का खुलासा नहीं हुआ है।
बिपाशा बसु के बाबत अमर ने कहा कि अगर वह बुलातीं तो वह जरूर जाते। सीडी में आवाज को लेकर स्वयं बिपाशा ने ही चुनौती दी है। सीडी में अपनी आवाज के इस्तेमाल पर अमर का कहना है कि जो भी यह काम कर रहा है, उसके पास उनका वॉयस बैंक है। टेप की असलियत का खुलासा शीघ्र हो जाएगा। सीडी कांड के पीछे मुंबई के एक प्रसिद्ध उद्योगपति का दिमाग है। वह मुझे खत्म करना चाहता है।
यूपी में जनता के पास विकल्प नहीं
अमर सिंह का मानना है कि यूपी में फिलहाल बसपा के मुकाबले कोई विकल्प नहीं है। मुलायम सिंह घर में बैठे हैं। सपा का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि राजनीति चेतना से चलती है। जिसमें चेतना नहीं है, वह जड़ हो जाता है। कांग्रेस भट्टा पारसौल के बहाने उप्र में सिंगूर और नंदीग्राम का ख्वाब देख रही है।

स्वामी अग्निवेश के बयान पर मच गया बवाल

(स्वामी अग्निवेश ने बिल्कुल ठीक कहा है। आस्था का मतलब पाखण्ड तो नहीं होता लम्बे समय से भारत इन पाखण्डियों के चक्कर में दारिद्र्य को झेल रहा है इन पर प्रतिबन्ध लगाकर इनकी सारी सम्पदा राष्ट्र्निर्माण में लगानी चाहिए। यदि ईश्वर कहीं हैं तो वह भी मानव उत्थान ही तो चाहते हैं या अपने उपर अरबों करोड़ों खर्च कराना। यही फजूलखर्ची पाखण्ड को बढ़ावा देती है हर तरह के पाखण्डी को लूट की छूट भी।
आम आदमी जिन्दगी भर इसी प्रकार के पाखण्ड के चक्करों में पड़कर पूरा जीवन बर्वाद कर लेता है, पाखण्डी धताबताकर उसे लूटता रहता है।
डाॅ.लाल रत्नाकर
गाजियाबाद/जौनपुर)

अमर उजाला से साभार -
श्रीनगर।
Story Update : Tuesday, May 17, 2011    2:34 AM
घाटी पहुंचते ही सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश के सुर बदल गए। उन्हें करोड़ों हिन्दुस्तानियों की आस्था का केंद्र अमरनाथ यात्रा धार्मिक छल नजर आने लगी। पीस कान्फ्रेंस में भाग लेने पहुंचे अग्निवेश ने प्रेस से बातचीत में अलगाववादियों के सुर से सुर मिलाते हुए यात्रा को धार्मिक पाखंड और पवित्र गुफा में हिमलिंग निर्माण को प्राकृतिक सिस्टम करार दिया। उन्होंने कहा कि वह ऐसे धर्म पर विश्वास नहीं रखते।

अग्निवेश के इस बयान से हिंदू संगठन भड़क उठे हैं। स्वामी ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पूर्व चेयरमैन राज्यपाल एसके सिन्हा को निशाना बनाते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते शिवलिंग पिघलने के बाद नकली शिवलिंग तैयार करवाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने प्रदर्शनों में मारे गये 118 लोगों की मौत की सीबीआई जांच कराने और फौजी कानून हटाने की भी मांग की। इस बयान से गुस्साए विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, भाजपा, क्रांति दल, शिव सेना आदि संगठनों ने अग्निवेश से माफी मांगने को कहा है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता एमएलसी एडवोकेट रवीन्द्र शर्मा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि कांगे्रस ऐसे बयानों का कभी समर्थन नहीं करती।

विहिप के प्रदेशाध्यक्ष डा. रमाकांत दुबे व बाबा अमरनाथ यात्री न्यास के अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने बयान की कड़ी निंदा की। अग्रवाल ने कहा कि बाबा बर्फानी करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा का प्रतीक हैं। सालाना लाखों लोग दर्शन को आते हैं। इससे अग्निवेश को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। बजरंग दल के प्रदेश संयोजक नंद किशोर मिश्रा ने अग्निवेश को कांग्रेसी और अलगाववादियों का एजेंट बताते हुए कहा कि स्वामी बनकर समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का उन्हें कोई हक नहीं। वे अलगाववादियों की बोली बोलना बंद करें। यात्रा को पाखंड कहने पर माफी मांगे।

शिव सेना बाल ठाकरे के प्रदेश प्रमुख अशोक गुप्ता, हिंदुस्तान शिव सेना के डिपीं कोहली, शिव सेना युनाइटेड के अध्यक्ष राजेश केसरी, क्रांति दल के महासचिव प्रीतम शर्मा और भाजपा के प्रदेश सचिव युद्धवीर सेठी ने भी अग्निवेश के बयान को निंदनीय बताकर उनसे माफी मांगने को कहा है। शिव सेना ने कहा है कि अगर अग्निवेश माफी नहीं मांगेंगे तो उन्हें जम्मू में घुसने नहीं दिया जाएगा।