शनिवार, 29 जनवरी 2011

ये इलेक्ट्रानिक यंत्र आमतौर पर जानवरों को पहनाए जाते हैं।

दुनिया की नज़र में 'भारतीय' पशु की श्रेणी में, और उन्ही भारतियों के मस्तिष्क में ९० फीसदी आदमी 'जानवरों से बदतर' इसी सड़ी मानसिकता के कारण दुनिया में अपनी जगह न बना पाना भारतियों का सबसे बड़ा दोष . असमानता के मूल जनक भारतीय  समाज के राक्षसी प्रवृत्ति के लोग .
- डॉ.लाल रत्नाकर
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जागरण से साभार -

अमेरिका में भारतीय छात्रों से अमानवीय व्यवहार

Jan 29, 08:12 pm
वाशिंगटन। कैलिफोर्निया स्थित ट्राय वैली विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय छात्रों के साथ धोखाधड़ी के बाद अमेरिकी प्रशासन ने भी उनसे अमानवीय व्यवहार किया है। प्रशासन ने वीजा धोखाधड़ी के आरोपों का सामना कर रहे छात्रों को टखनों में रेडियो कॉलर पहनने के लिए मजबूर किया ताकि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। जीपीएस प्रणाली से लैस ये इलेक्ट्रानिक यंत्र आमतौर पर जानवरों को पहनाए जाते हैं। मामले पर नाराजगी जताते हुए भारत सरकार ने अमेरिकी प्रशासन से इन छात्रों के साथ नरमी से पेश आने का आग्रह किया है।
उत्तर अमेरिकी तेलुगु संघ के जयराम कोमती ने एक भारतीय न्यूज चैनल से कहा, छात्रों के टखनों में कोई निगरानी प्रणाली लगाई गई है। अमेरिका में जो कुछ भी हुआ उसमें छात्रों की कोई गलती नहीं है। गलती उस विश्वविद्यालय की है जिसने नियम तोड़े।'
नई दिल्ली में दैनिक जागरण ब्यूरो के अनुसार प्रवासी मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने अमेरिका से आग्रह किया कि भारतीय छात्रों के साथ नरमी का व्यवहार होना चाहिए क्योंकि वे वीजा धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं। उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़े के शिकार भारतीय छात्रों की निगरानी के लिए रेडियो कॉलर के इस्तेमाल की खबरों को लेकर भारतीय दूतावास अमेरिकी विदेश विभाग के संपर्क में है।
पिछले दिनों कैलिफोर्निया की एक अदालत में ट्राय वैली विश्वविद्यालय के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और वीजा नियमों के उल्लंघन की शिकायत दर्ज कराई गई थी। इसके बाद हुई कार्रवाई से विश्वविद्यालय के 1555 छात्रों के भविष्य पर खतरे की तलवार लटक रही है। इनमें 95 फीसदी छात्र आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं।
अमेरिकी सरकार इन छात्रों के वीजा रद करने की कार्रवाई कर रही है। मामले की जांच कर रही अमेरिकी एजेंसियों का दावा है कि कैलिफोर्निया के इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए वीजा पर आए छात्र अन्य जगहों पर नौकरी करते पाए गए।

रविवार, 23 जनवरी 2011

मनमोहन सिंह पहले ईमानदार थे: जेठमलानी

जागरण से साभार-


Jan 23, 11:56 pm
नई दिल्ली। प्रसिद्ध वकील और भारतीय जनता पार्टी के सांसद राम जेठमलानी ने कहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पहले ईमानदार थे लेकिन अब नहीं क्योंकि अब वह भ्रष्ट लोगों का बचाव कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग करते हुए जेठमलानी ने एक न्यूज चैनल पर कहा, 'सिर्फ रिश्वत लेने से इंकार करने पर कोई ईमानदार नहीं हो जाता है। मनमोहन सिंह को पद छोड़ देना चाहिए। वह प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तो देश बेहतर स्थिति में होगा।' वरिष्ठ वकील ने कहा कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार घोटालों की सरकार है। हर हफ्ते नया घोटाला सामने आ रहा है।

शनिवार, 22 जनवरी 2011

भ्रष्टाचार पर लगाम को ठोस उपाय करे सरकार


बंगलूरू।
Story Update : Saturday, January 22, 2011    3:19 AM
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देश की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की तीसरी बड़ी कंपनी विप्रो के प्रमुख अजीम प्रेमजी ने भ्रष्टाचार को देश के लिए गंभीर मसला बताते हुए कहा है कि सरकार को इसका समाधान करने के लिए ठोस उपाय करने चाहिए। प्रेमजी ने चालू वित्त वर्ष के लिए कंपनी की तीसरी तिमाही के परिणाम घोषित करने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि बहुत हो गया अब भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए।

सरकार को लिखे पत्र पर किए हस्ताक्षर
विप्रो प्रमुख ने स्वीकार किया कि देश की मौजूदा स्थिति के संबंध में उद्योगपतियों, बैंकरों, पूर्व न्यायाधीशों और नियामकों की तरफ से जताई गई चिंता पर लिखे पत्र में उन्होंने भी हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा कि पत्र में चिंता के साथ कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। सरकार को इस दिशा में विस्तृत योजना के तहत कदम उठाना चाहिए। पत्र में भ्रष्टाचार के अलावा गवर्नेंस मामले से भी निपटने का उल्लेख है। इस खुले पत्र पर प्रेमजी के अलावा हस्ताक्षर करने वालों में एचडीएफसी के अध्यक्ष दीपक पारिख, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा और रिजर्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष बिमल जालान शामिल हैं।

पत्र में दिए गए सुझावों मे स्वंतत्र और निष्पक्ष नियामक संस्थाओं के गठन, जांच एजेसिंयों और अन्य ऐसी ही एजेंसियों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखने आदि बातें शामिल हैं। पत्र में आर्थिक विकास का लाभ गरीब और वंचित तबकों तक नही ंपहुंचने की बात कहते हुए समग्र विकास की जरूरत बताई गई है। इसमें कहा गया है कि इसके लिए ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए, जिसमें विकास का फायदा उठाने का अवसर हर आदमी को मिलना चाहिए।

एजेंसी

बुधवार, 19 जनवरी 2011

विदेशों में जमा काला धन देश लूटने के बराबर

दैनिक जागरण से साभार -


Jan 19, 02:50 pm

नई दिल्ली। विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर पूरी जानकारी देने में सरकार की हिकिचाहट पर नाखुशी जताते हुए हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारतीय संपत्ति को विदेशों में रखना देश को 'लूटने' के बराबर है।
न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की खंडपीठ ने पूर्व विधि मंत्री राम जेठमलानी और अन्य कई लोगों की ओर से दायर विदेशों में जमा काले धन संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह शुद्ध तौर पर राष्ट्रीय संपत्ति की चोरी है। हम दिमाग को झकझोरकर रख देने वाले अपराध की बात कर रहे हैं। हम विभिन्न संधियों के ब्यौरे में नहीं जाना चाहते।
सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने खंडपीठ को बताया कि सरकार ने दोहरा काला धन बचाव अधिनियम के तहत क्या कदम उठाए हैं, जिस पर पीठ ने यह टिप्पणी की। अदालत इस बात पर भी नाखुश थी कि सरकार ने जर्मनी के लिचटेंस्टीन बैंक में 26 लोगों द्वारा जमा किए पैसे से जुड़ी जानकारी पर प्रतिबंध लगाने संबंधी एक हलफनामा दायर किया है।
खंडपीठ ने सवाल किया कि आपके पास इतनी ही जानकारी है या आप कुछ और भी बताने वाले हैं? पीठ ने टिप्पणी की, 'हम बहुत बड़ी राशि की बात कर रहे हैं। यह देश के साथ लूट है।
खंडपीठ ने इस बात पर भी दु:ख जताया कि सीलबंद लिफाफे में जो हलफनामा दाखिल किया गया है, जिसमें 26 लोगों के नामों का संदर्भ है, उस पर सिर्फ किसी निदेशक स्तर के अधिकारी के हस्ताक्षर हैं। न्यायालय ने कहा कि इस पर वित्त सचिव, स्वयं के हस्ताक्षर होने चाहिए थे।
पीठ ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि इससे सरकार की 'गंभीरता' का पता चलता है। पीठ ने कहा कि हमने सोचा था कि जिस व्यक्ति को हलफनामे पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत किया गया, वह वित्त सचिव ही होने चाहिए थे। सालिसिटर जनरल ने हालांकि यह कह कर खंडपीठ को शांत करने की कोशिश की कि यह एक स्थापित प्रक्रिया है कि जब भी कोई हलफनामा दाखिल होता है, उसे शीर्ष स्तर की सहमति से ही दाखिल किया जाता है।
सुब्रमण्यम ने इस बात को भी स्वीकार किया कि विदेशी बैंकों में जमा काले धन की राशि दिमाग को झकझोर कर रख देने वाली है, लेकिन उन्होंने इस पूरी जानकारी को साझा करने में सीमाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को उन देशों के साथ आपसी समझौतों से काम करना होता है, जिनके बैंकों में यह धनराशि जमा है।
खंडपीठ ने सरकार से यह भी सवाल किया कि वह इससे जुड़ी जानकारी को सिर्फ लिचटेंस्टीन बैंक तक ही क्यों सीमित रख रही है। सालिसिटर जनरल ने कहा कि वह रिट याचिका में दी गई बातों के आधार पर जानकारी दे रहे हैं, इस पर पीठ ने पूछा कि आप इस मामले को लिचटेंस्टीन बैंक तक क्यों सीमित रख रहे हैं।
पीठ ने पूछा कि वह कौनसी बात है जो इस अदालत को जनहित में इस रिट याचिका का क्षेत्र बढ़ाने से रोक रही है। पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि हम सिर्फ यह चाहते हैं कि आप विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई राशि के बारे में सारी जानकारी दें। न्यायालय ने यह भी कहा कि यहां कर से बचने का सवाल ही नहीं पैदा हो रहा।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अनिल दीवान ने कहा कि सरकार इस मामले में जानकारी छिपा रही है और यह पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि डीटीएए की याचिका जनता से जानकारी छिपाने की दुर्भावना के कारण ली गई है और कर से बचने के मुद्दे का यहां कोई संदर्भ नहीं है क्योंकि इस राशि का स्रोत आतंकवाद, मादक पदार्थ या हथियारों की तस्करी भी हो सकता है।
न्यायालय ने पिछले सप्ताह इस बात पर भी नाखुशी जताई थी कि सरकार विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नामों का खुलासा करने की अच्नच्छुक है।
सुब्रमण्यम ने 14 जनवरी को पीठ को बताया था कि सरकार को विवरण मिल गया है, लेकिन वह उसका खुलासा नहीं करना चाहती, इस पर पीठ ने कहा था कि जानकारी का खुलासा करने में क्या परेशानी है।

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

उद्योगपतियों की चिंता : सरकार पर विश्वास कम हो रहा है: उद्योगपति


उद्योगपति
भारत के उद्योगपतियों ने बेहतर प्रशासन की मांग करते हुए सरकार को खुला पत्र लिखा है.
बी बी सी से साभार -
भारत के चौदह प्रमुख उद्योगपतियों ने देश के नेतृत्व को एक खुले पत्र में कहा है कि देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर काब़ू पाने की ज़रुरत है.
इन उद्योगपतियों ने कहा है कि सरकार हो, व्यापार या सरकारी संस्थाएं, इनमें प्रशासन पर विश्वास की कमी आई है.
उनका कहना था कि बजट घाटे का असर सरकार के निर्णयों पर आ रहा है.
सरकार को सबसे पहले जनता में खोया हुआ आत्मसम्मान और विश्वास की बहाली करना ज़रुरी है.
उनका कहना था कि न्यायपालिका की वजह से जनता में थोड़ी बहुत उम्मीद बची है.
पत्र लिखने वालों में दीपक पारिख, जमशेद गोदरेज, बिमल जालान, केशब महिंद्रा, अज़ीम प्रेमजी, अनु आग़ा आदि शामिल है.
प्रधाममंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृह मंत्री पी चिदंबरम, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी आदि को लिखे इस पत्र में भ्रष्टाचार को देश के लिए सबसे बड़ी समस्या बताते हुए कहा गया है कि इसे जड़ से हटाने की कोशिश युद्ध स्तर पर की जानी चाहिए.

लोकपाल की ज़रुरत

उद्योगपतियों का कहना है कि कर्नाटक में जो भूमिका लोक आयुक्त ने निभाई है वो भ्रष्टाचार से लड़ने का एक उदाहरण है.
उन्होंने लोकपाल बिल को जल्द से जल्द राष्ट्रीय स्तर पर लाने की वक़ालत की है ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके.
विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि विरोध के नाम पर संसद को न चलने देना सही नहीं है.
उद्योगपतियों ने स्वीकार किया कि ग़रीबों तक आर्थिक प्रगति का लाभ नहीं पहुँच रहा है.
उद्योगपतियों के निशाने पर पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी रहे.
इन उद्योगपतियों का कहना है कि परियोजनाओं को पर्यावरण की चिंताओं के मद्देनज़र स्वीकृति मिलने में मुश्किलें आ रही है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों का इस मुद्दें पर नज़रिया एक नहीं है.

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

नौवीं पोस्ट-

(दैनिक जागरण से साभार)-
मुलायम के लिए खरीदे थे विधायक: अमर
Jan 15, 12:26 am
आगरा, [जासं]। सांसद अमर सिंह और सपा सुप्रीमो मुलायम के बीच चौड़ी होती खाई ने शुक्रवार की रात को नई सनसनी खड़ी कर दी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मैंने विधायकों की दलाली की थी। इस राजनीतिक छल-कपट के लिए मुख्यमंत्री मायावती मुझे माफ करें।
राज्यसभा सदस्य अमर सिंह शुक्रवार रात को पूर्व मंत्री अरिदमन सिंह की मां के त्रयोदशी संस्कार में शामिल होने आए थे। इस दौरान पत्रकारों से अनौपचारिक वार्ता करते हुए उन्होंने कहा कि मुलायम को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मैं बसपा के विधायकों को छल-प्रपंच से तोड़ता था।
सिंह ने कहा कि अपने इस छल के लिए मैं मुख्यमंत्री मायावती से क्षमाप्रार्थी हूं। दोबारा सपा में शामिल होने की अटकलों को उन्होंने अपने कठोर शब्दों से पूरी तरह दफन कर दिया। बोले कि मुलायम सिंह कहते हैं कि मैं फिर से उनके साथ आने वाला हूं, जबकि मैं पोटैशियम साइनाइड खा लूंगा, लेकिन मुलायम का चेहरा नहीं देखूंगा।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के दौरे के दौरान किए गए सपा के प्रदर्शन को भी उन्होंने शर्मनाक बताया। कहा कि मुलायम ने राहुल गांधी पर राजनीतिक हमले कराए। यह क्यों नहीं सोचा कि उनका भी बेटा है।
वह तो गांधी परिवार की इंसानियत है कि इसका जवाब नहीं दिया। इसके बाद अमर सिंह सिंह यह कहना भी नहीं भूले कि इस बात के मायने यह कतई न निकाले जाएं कि मैं राहुल की चापलूसी कर रहा हूं। राहुल मुझसे बहुत छोटे हैं।

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने एक सन्देश दिया -

आज यहाँ का दलित जिस दोहरी दशा के मध्य जीवन जी रहा है उसे मानसिक प्रसन्नता भले ही हो रही हो लेकिन उनका 'बुद्धिजीवी' आहत है, वैसे ही जैसे अमर सिंह की 'समाजवादी' हैसियत के दिनों से समाजवाद को ये ही अमर सिंह 'पूंजीवादियों की झोली' में डाल चुके थे! आज इसी डर से भयभीत है 'दलित चिन्तक' संभव है दलित उत्थान का दौर चल निकले -सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने एक सन्देश दिया है देखें-