शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
मधु पूर्णिमा किश्वर
सातवीं पोस्ट-
(यह खबर अमर उजाला से साभार)
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मधु पूर्णिमा किश्वर के विचार
(यह खबर अमर उजाला से साभार)
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मधु पूर्णिमा किश्वर के विचार
किसकी जवाबदेही | |||||||||||||||
Story Update : Tuesday, November 30, 2010 11:02 PM | |||||||||||||||
आज प्रिंट और टेलीविजन, दोनों मीडिया भ्रष्टाचार के मामले में अति उत्साह दिखा रहे हैं। हालांकि मैं यह समझ नहीं पा रही कि क्यों लगभग हर टिप्पणीकार मनमोहन सिंह की ‘व्यक्तिगत ईमानदारी और निष्ठा’ के प्रति श्रद्धा जताने में जुट जाते हैं, खासकर तब जब वे उनके कैबिनेट सहयोगियों द्वारा किए गए घोटालों की चर्चा करते हैं। वह भी तब जब इसके स्पष्ट सुबूत हैं कि विभिन्न गैरकानूनी सौदों के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी थी। जैसे कि टेलीकॉम घोटाले में उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगी द्वारा पिछले छह वर्षों से जारी शर्मनाक आर्थिक अपराध को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। भ्रष्टाचार केवल व्यक्तिगत रूप से रिश्वत लेने और उसे विदेशों में गुप्त खातों में जमा करने, बेनामी संपत्ति खरीदने या अपनी पत्नी के लिए हीरे के गहने स्वीकार करना ही नहीं है। भ्रष्टाचार प्रच्छन्न अवतारों में आ सकता है, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालकर भी कुछ लोगों के व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से जान-बूझकर आंखें फेर लेना। उदाहरण के लिए, मुंबई के आतंकी हमलों में पुलिस को घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट की आपूर्ति के लिए एक भी आदमी को सजा नहीं दी गई। हाल के सप्ताहों में हमारे कुछ सम्मानित स्तंभकारों ने चेताया कि किसी को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने के बजाय हमें सांगठनिक सुधार की बात करनी चाहिए। लेकिन जब ताकतवर लोग अपने कार्यालय की स्वायत्तता और संस्थान की विश्वसनीयता को सुनियोजित ढंग से नष्ट कर दें, तब आप लोकतांत्रिक संस्थाओं पर विश्वास कैसे बचाए रख सकते हैं? अगर आप किसी के नियंत्रण में आकर उसके पक्षधर बन जाएंगे और देश की छवि और सुरक्षा की अनदेखी करके भारी समझौते के लिए तैयार हो जाएंगे, तो संस्थान को गुलाम बनते देर न लगेगी। डॉ. मनमोहन सिंह सत्ता के महत्वपूर्ण पदों पर संदिग्ध छवि वाले लोगों की नियुक्ति करने की अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते। निर्वाचन आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं में वैसी संदिग्ध छवि के लोगों को भरा गया, जिनकी विश्वसनीयता पर न केवल विपक्ष, बल्कि मीडिया और गणमान्य लोगों ने भी सवाल उठाए। प्रधानमंत्री ने उन लोगों को भी महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप साबित हो चुके हैं। यह सरकार न्यायिक क्षेत्र के शीर्ष व्यक्तित्वों को बचाने के लिए स्थापित नियम-कायदों से बाहर चली गई है, जबकि उन माननीयों के अपराध अगर साबित हो जाएं, तो उन पर महाभियोग चलाया जा सकता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनकरण को स्थानीय न्यायिक बिरादरी के कोप एवं बहिष्कार से बचाने के लिए सिक्किम उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जबकि सिक्किम के लोगों ने भी उनका विरोध किया। उत्तर प्रदेश में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों के प्रोविडेंट फंड की राशि के लूट में हिस्सेदारी लेने वाले जजों को जांच के दायरे में नहीं लाया गया, केवल दंड देकर छोड़ दिया गया। उनमें से एक सुप्रीम कोर्ट में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत हुआ। घोटाले के मुख्य आरोपी की, जिसने बाद में जजों की संलिप्तता के सुबूत उपलब्ध कराए, रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश को अभियोजन से बचाया गया, जबकि संप्रग सरकार की पहली पारी में उनके खिलाफ लगे आरोप सुरेश कलमाडी की तुलना में कम गंभीर नहीं थे। राष्ट्रमंडल खेल घोटाला केवल फरजी कंपनियों को बढ़े हुए बिलों पर भुगतान कर धन के गबन का ही नहीं है। यह सब ठेकेदार-राजनेताओं के माफिया से शुरू हुआ, जिसमें पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन कर यमुना खादर को मुख्य रीयल इस्टेट में बदलकर खेलगांव का नाम देकर आलीशान इमारत बनाने की अनुमति प्रदान की गई। यह काम हाई कोर्ट द्वारा यमुना खादर में निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा देने के बावजूद हुआ। जरूरत थी कि हाई कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए कलमाडी से ज्यादा शक्तिशाली जन-दबाव सुप्रीम कोर्ट पर पड़ता और नाक के ठीक नीचे तमाम पर्यावरण नियमों का उल्लंघन होते देख पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश इसे अनदेखा न करते। जाहिर है, खादर की जमीन को रीयल इस्टेट में बदलने के लिए राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन तो एक बहाना था। खेलगांव बनाने के लिए कंपनी का चयन, इसके वास्तविक मालिकों के नाम, इसके ज्ञात और अज्ञात साझेदार और इससे लाभान्वित होने वाले ज्ञात-अज्ञात लोगों की सूची जब सामने आएगी, तो यह मुंबई के आदर्श हाउसिंग घोटाले से भी ज्यादा घातक साबित होगा। इसी तरह राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील राज्य कश्मीर का उदाहरण लें। मनमोहन सिंह उमर-विरोधी आंदोलन को भारत-विरोधी आंदोलन में तबदील होने से रोक नहीं पाए, जबकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी इस मामले में सख्ती के इच्छुक थे। जब पूरी घाटी उमर अब्दुल्ला के निरंकुश शासन के खिलाफ थी, तब मनमोहन सिंह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा सके। निजी तौर पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता स्वीकारते हैं कि जब तक राहुल गांधी उमर के दोस्त हैं, तब तक मुख्यमंत्री को छुआ नहीं जा सकता। जबकि मनमोहन सिंह अच्छी तरह जानते हैं कि उमर के शासन ने पाक प्रेरित अलगाववादियों को कश्मीर में नए सिरे से पांव जमाने का मौका दिया है। प्रधानमंत्री पद पर होने की वजह से यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह व्यक्तिगत वफादारी और राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर काम करें। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं दिखता। --------------------
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मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
छठी पोस्ट-
भ्रष्टों का समाज | |
गिरीश मिश्र | |
Story Update : Tuesday, December 28, 2010 11:18 PM | |
पिछले दिनों पूर्वी दिल्ली में एक पांचमंजिला भवन धराशायी हो गया था। उसी हादसे के आसपास राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला और 2 जी स्पेक्ट्रम बंटवारे में घोटाले के मामले सामने आए। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी घोटालों से मीडिया और आम लोगों का ध्यान भी धीरे-धीरे हटने लगा है। सचाई यह है कि आज बड़ा से बड़ा अपराध भी लोगों की स्मृति से कुछ ही दिनों में उतर जाता है। अगर हम इतिहास में झांकें, तो पाएंगे कि अपराध मानव समाज में युगों से है। वेदों में हमें अनार्यों द्वारा आर्यों की संपत्ति चुराने का जिक्र मिलता है। मगर वह चोरी अंधेरे में होती थी। इसलिए हम सूर्य, चंद्रमा, ऊषाकाल, प्रकाश आदि की अभ्यर्थना पाते हैं। धर-धान्य, मवेशी आदि की चोरी प्राचीन काल से होती आई है। बदमाश, जेबकतरे, डाकू आदि नए नहीं हैं। यहां ध्यान रखने की बात यह है कि शिकार बनाने और शिकार बनने वाले, दोनों की पहचान स्पष्ट होती है। मसलन, जेबकतरा जब आपकी जेब काटता है, तो उसे अपने शिकार का पता होता है। अपराध के स्वरूप और उसके विभिन्न आयामों में परिवर्तन 19वीं सदी में देखने में आया, जब आधुनिक पूंजीवाद का उदय हुआ। इनकी चर्चा हमें चार्ल्स डिकेंस, बाल्जाक, एमिल जोला आदि साहित्यकारों की कृतियों में मिलती है। मगर पहली बार इनका वैज्ञानिक विश्लेषण अमेरिकी समाजशास्त्री एडवर्ड अल्सवर्थ रौस ने पिछली सदी के प्रथम दशक में किया। द क्रिमिनलोयाड नाम से उनका मशहूर शोधपत्र द एटलांटिक मंथली के जनवरी 1907 अंक में प्रकाशित हुआ। उनके मुताबिक, जिन नए किस्म के अपराधियों का उदय हुआ है, उन्हें समाज सामान्यतया कर्मठ, बुद्धिमान और सफल मानता है और उन्हें सम्मान भी देता है। आम अपराधियों के विपरीत इनकी गिरफ्तारी को दबा दिया जाता है। ध्यान से देखें, तो वे परंपरागत अपराधियों से अधिक खतरनाक होते हैं। वे समाज और राजकोष को ही अधिक क्षति पहुंचाते हैं, जिसका असर लंबे समय तक महसूस किया जाता है। ऐसा इसलिए नहीं होता कि समाज उनका चापलूस होता है। इसका मूल कारण है कि उनके अपराध नए हैं और पूंजीवाद के आधुनिक रूप के साथ आए हैं। इन अपराधों को अंजाम देने वालों के लक्ष्य उस तरह स्पष्ट नहीं होते, जिस तरह किसी बदमाश या जेबकतरे के होते हैं। इनके दुष्परिणाम भी तुरंत प्रकट नहीं होते। अगर कोई अभिजात व्यक्ति किसी को गाड़ी से कुचल दे, समय समाप्त होने के बाद शराब परोसने से मना करने वाली परिचारिका को गोली मार दे या अपनी पत्नी की हत्या कर दे, तो भारी हंगामा मचता है। लेकिन रिश्वतखोरी के कारण घटिया निर्माण सामग्रियां इस्तेमाल करने वाला या रिश्वत लेकर ठेका देने में पक्षपात करने वाला समाज और मीडिया की भर्त्सना का कभी-कभार ही शिकार होता है। आजादी के बाद बिहार में भूमि सुधार कानूनों की धज्जियां उड़ाकर राज्य को पिछड़ेपन की गर्त में धकेलने और करोड़ों लोगों को विपन्न जीवन बिताने के लिए मजबूर करने वालों की सामाजिक प्रताड़ना तक न हुई। उलटे वे अधिकाधिक संपन्न होकर सत्ता पर हावी हो गए। इसका मूल कारण यह है कि परंपरागत किस्म की नैतिकता हमारे ऊपर हावी है। आधुनिक औद्योगिक पूंजीवाद काफी जटिल है। बाजार ने सारे कार्य-व्यापार को इतना जटिल बना दिया है कि सतह के नीचे क्या हो रहा है, यह जान पाना सबके बूते की बात नहीं है। नई वित्तीय व्यवस्था और विधिशास्त्र की जटिलताओं ने आपराधिक कृत्यों को काफी हद तक छिपाया है। बाजार में ऐसे विशेषज्ञ आ गए हैं, जो बताते हैं कि करों तथा अन्य चीजों की चोरी कैसे निरापद रूप से की जाए। चोरी के धन को कहां छिपाया जाए या धो-पोंछकर कैसे कानूनी कारोबार में लगाया जाए। ऐसी एक बड़ी प्रभावशाली जमात का जन्म हुआ है, जिसका काम नए प्रकार के अपराधों पर परदा डालना, सत्तारूढ़ लोगों को प्रभावित करना तथा अपराध में लिप्त लोगों की छवि को मनोहारी बनाना है। व्यवसायियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच एक गठबंधन बन गया है। आजादी के बाद ही नए किस्म के दलाल सत्ता के गलियारों में दिखते आ रहे हैं। परंपरागत अपराधियों के विपरीत नए किस्म के अपराधी सामाजिक रूप से सक्रिय होते हैं। कई तो धार्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक अवसरों तथा राहत कार्यों के दौरान तिजोरी खोल खुद को लोकप्रिय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ये राजनेताओं के चुनाव अभियान में भी भरपूर मदद करते हैं। नए प्रकार के ये अपराधी अपने संसाधनों और प्रभाव के बूते ऐसा सामाजिक एवं राजनीतिक सम्मान और दबदबा हासिल कर लेते हैं, जो किसी आम चोर-डाकू को कभी मयस्सर नहीं हो सकता। एक डाकू या हत्यारा किसी व्यक्ति से उसकी कमाई या जिंदगी छीन लेता है, मगर समाज के आदर्शों को स्थायी रूप से कोई क्षति नहीं पहुंचाता, जबकि वित्तीय हेराफेरी करने वाले का अपराध पूरा समाज भुगतता है। नए किस्म के अपराधी आम तौर पर संवेदनहीन होते हैं, क्योंकि उनको पता नहीं कि शिकार कौन और कब बनेगा। सौ वर्ष के लिए बना पुल अगर घटिया सामान के कारण बीस वर्षों में धराशायी हो जाता है, तो बनाने वाले को मालूम नहीं होता कि इससे कितनी जानें जाएंगी। इसी प्रकार सरकारी खजाना लूटनेवाले को यह भान नहीं होता कि पैसे के अभाव में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने से किसे हानि होगी। इसके बावजूद नए किस्म के अपराधियों के अपराध को समाज और सरकारें गंभीरता से नहीं लेतीं, तो इससे बड़ी विडंबना और कुछ नहीं है। (अमर उजाला से साभार) |
रविवार, 26 दिसंबर 2010
पांचवी पोस्ट-
तब राजा के पास नहीं थे फोन तक के पैसे!
एनडीए के वक्त केंद्र में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री बने। तीसरी बार जीते तो यूपीए सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय मिला, फिर संचार मंत्रालय। चौथी बार चुने जाने पर फिर यही विभाग मिला। नीरा राडिया के टेपों से पता चला कि किस कदर जोड़-तोड़ के बाद संचार मंत्री की कुर्सी हासिल हुई। एंदीमुथु राजा। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सर्वेसर्वा। संचार मंत्री की कुर्सी गई तो सीबीआई की टीमें दिल्ली से लेकर तमिलनाडू तक छापे मारती नजर आईं। जमकर फायदे बटोरने वाले उनके करीबी दोस्त और रिश्तेदार भी लपेटे में आए। 47 साल के राजा 1996 में पहली बार सांसद बने। दूसरी दफा 1999 में।
लेकिन जब एक लाख 76 हजार करोड़ के घोटाले की खबरें आईं तो तमिलनाडू के पेरंबलूर के मतदाता हैरत में पड़ गए। उन्हें खूब पता था कि राजनीति में कदम रखने के पहले जब राजा कानून की डिग्री लेकर जिला अदालत में काला कोट पहनकर वकालत के लिए आए थे तो उनकी जेब में खुद के फोन के बिल जमा करने तक के भी पैसे नहीं होते थे।
आज़म खान ने तेज़ तर्रार बयानों के साथ किया कांग्रेस पर हमला
नेहरू-शेख अब्दुला के बीच हुआ समझौता सार्वजनिक हो
Dec 27, 12:46 am
इटावा। अब समय आ गया है कि पं. जवाहरलाल और शेख अब्दुल्ला के बीच कश्मीर को लेकर हुए समझौते को देश की जनता के सामने सार्वजनिक किया जाए। आखिर पता तो चले कि कश्मीर समस्या के विवाद की जड़ है क्या। यह बात हाल ही में समाजवादी पार्टी में वापस लौटे मोहम्मद आजम खां ने दैनिक जागरण से चर्चा करते हुए कही।
उन्होंने कहां कि गुलाम नबी आजाद देश के मुस्लिमों के नेता न तो थे और न ही कभी हो सकते हैं। रही बात केंद्र की हुकूमत की तो उसने आश्वासन के बाद भी देश के मुसलमानों के साथ धोखा किया। सच्चर कमेटी का उदाहरण देश के सामने है। तभी देश की 1/5 फीसदी आबादी मुस्लिमों की होने के बाद भी केंद्र में केवल एक ही मुस्लिम मंत्री है। खां शनिवार की रात सैफई महोत्सव में आयोजित सभा कवि सम्मेलन में मुख्यअतिथि के रूप में आये थे।
शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010
'सच बोलकर आप ख़तरे में घिरते हैं'
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/12/101222_udayprakash_iv_vv.श्त्म्ल
मीडिया प्लेयर
चर्चित और विवादास्पद कथाकार और कवि उदयप्रकाश को इस वर्ष साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है.
यह पुरस्कार उन्हें उनकी कथा मोहनदास के लिए दिया गया है.
समीरात्मज मिश्र ने उनसे पुरस्कार की घोषणा के बाद बात की.
गुरुवार, 23 दिसंबर 2010
चौथी पोस्ट - क्या होगा यूपी का, आधा साल रहती है छुट्टी !
(दैनिक जागरण से साभार)
Dec 24, 04:06 am
Dec 24, 04:06 am
नदीम, लखनऊ। जरा जोड़िए। 52 रविवार + 52 शनिवार + 32 सार्वजनिक अवकाश + 31 अर्जित अवकाश + 14 आकस्मिक अवकाश + 02 निर्बधित अवकाश। कितना योग आया...? 183, जी हां 183। उत्तार प्रदेश के सरकारी दफ्तरों में यह है छुट्टियों की संख्या। साल के 365 दिन में 183 यानी आधा साल छुट्टी।
गौरतलब यह है कि यूपी में सरकारी छुट्टियों में देखते-देखते यह इजाफा हुआ है। वजह यह कि यहां छुट्टियों की बिसात पर राजनीतिक चालें चली जाने लगी हैं। राजनाथ सिंह उत्तार प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, वह जातीय सम्मेलनों के आयोजन में खासी दिलचस्पी रखते थे। इसके पीछे उनकी सोच अलग-अलग जातियों के भीतर अपना वोट बैंक तैयार करने की थी। यही वजह रही कि उन्होंने चेटी चंद, महाराजा अग्रसेन और चित्रगुप्त की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया। मुलायम सिंह जब मुख्यमंत्री थे, उनकी पहली फिक्र अपने मुस्लिम वोट सहेजने की और दूसरी 'सोशल इंजिनियरिंग' के नाम पर बसपा के पाले में जा रहे ब्राहमणों को रोकने की थी। मुलायम सिंह यादव ने अलविदा तथा हजरत अली के जन्म दिन पर सार्वजनिक अवकाश तो किया ही है, ब्राहमणों को खुश करने के नजरिये से परशुराम जयंती पर भी सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया।
बसपा सरकार में कांशीराम जयंती और उनके निर्वाण दिवस पर दो नयी सार्वजनिक छुट्टियां घोषित हुई। छुट्टियों का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पासी समाज ऊदा देवी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की मांग रहा है। सपा व भाजपा दोनों तरफ से यह आश्वासन दिया जा चुका है, उनकी सरकार बनते ही यह छुट्टी घोषित की जाएगी। सविता समाज की तरफ से भी सार्वजनिक अवकाश की मांग हो रही है।
कामकाज पर असर : उत्तार प्रदेश में सचिवालय और सभी विभागाध्यक्ष कार्यालयों में पांच दिनी सप्ताह लागू है। पांच दिनी सप्ताह के इतर वाले सरकारी दफ्तरों में भी छुट्टियों की संख्या कुछ कम नहीं है। यहां भले ही सभी शनिवार पर छुट्टी न होती हो लेकिन 52 रविवार के साथ-साथ 12 द्वितीय शनिवार + 32 सार्वजनिक अवकाश + 31 अर्जित अवकाश + 14 आकस्मिक अवकाश + 02 निर्बधित अवकाश+ 04 कार्यकारी आदेशों के तहत घोषित अवकाश + तीन स्थानीय अवकाश यानी कि 150 छुट्टियां तो मिलती ही हैं। इतनी अधिक छुट्टियों का काम काज पर असर पड़ना स्वाभाविक है।
रविवार, 19 दिसंबर 2010
तीसरी पोस्ट - तीसरे मोर्च ने उड़ा दी थी अमेरिका की नींद .
लूट मंच की पोस्ट के पक्ष में यह खबर कितनी सहायक है पाठक तय करेंगें | ---------------------------------------------------------------------------------------------------------. तीसरे मोर्च ने उड़ा दी थी अमेरिका की नींद | |
नई दिल्ली। | |
Story Update : Monday, December 20, 2010 12:15 AM | |
वेबसाइट विकिलीक्स ने भारत और अमेरिकी संबंधों के बारे में एक और अहम खुलासा किया है। वेबसाइट के मुताबिक साल 2009 के लोकसभा चुनावों के पहले अमेरिका भारत में वाम दलों के सत्ता में आने की संभावना से चिंतित था। इन चुनावों में वाम दल अहम भूमिका निभा रहे थे। उस साल 12 फरवरी को भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा कि एक तरफ जहां, कांग्रेस और भाजपा अपने दम पर सत्ता में नहीं आएंगे, वहीं अमेरिका-भारत के लिए सबसे बुरा पहलू तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की स्थिति में हो सकता है। सरकार बनी तो अमेरिकी-भारत संबंधों पर पड़ता असर विकिलीक्स की ओर से जारी दूतावास के एक संदेश में कहा गया है कि उन परिस्थितियों में, कम्युनिस्ट पार्टियों का गठबंधन में खासा प्रभाव रहेगा। भारत में अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव हुए थे। तत्कालीन राजदूत डेविड सी मलफोर्ड द्वारा हस्ताक्षर किए इस संदेश में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों नजदीकी अमेरिका-भारत संबंधों का समर्थन करती हैं। यह संदेश तत्कालीन अमेरिकी विशेष दूत रिचर्ड हॉलब्रुक के लिए था। इसमें कहा गया है कि अगर इन दोनों पार्टियों को सरकार बनाने के लिए स्थानीय दलों के साथ गठबंधन करना पड़ा तो अमेरिका-भारत संबंधों के आगे बढ़ने की क्षमता प्रभावित होगी। भारत से जुड़े विकिलीक्स के अहम खुलासे -अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से राहुल गांधी की इस बातचीत का खुलासा कि देश को ज्यादा खतरा हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से है। - चीन चाहता है कि पाकिस्तान में आतंकवाद बना रहे, ताकि उससे उलझने में भारत की ऊर्जा खत्म हो जाए। - भारत की दो खदानें और गुजरात की दवा फैक्टरी पर आतंकी हमला होता तो इससे अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा को बड़ा नुकसान पहुंचता - मुंबई हमलों से पहले ही लश्कर-ए-ताइबा पर लगाम चाहता था अमेरिका - लश्कर-ए-ताइबा की मोदी को मारने की साजिश थी। - अमेरिका ने चली थी दोहरी चाल, नही चाहता था कि मुंबई हमले में पाक की भूमिका सार्वजनिक हो। (दैनिक भाष्कर से साभार) | |
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शनिवार, 18 दिसंबर 2010
लूट तंत्र की दूसरी पोस्ट - राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में जारी .
इस देश का भाग्य कहा जाय या यह कहा जाये की इनको किसी का श्रोप लगा हुआ है की यह उबरेंगे ही नहीं, सहज और एक अनोखे महान नायक की तरह जो भी यहाँ का शासक बनता है उसके सोचे हुए कार्य ही देश की तकदीर बन जाते है उन्ही पर काम होता है न की देश की सारी वह संस्थाए जिन्हें देश को सुधारने आगे ले जाने के उदयेश से बनाया गया है, यद्यपि जो समय के साथ पंगु हो जाति है क्योंकि यह वही मशीनरी होती है जो भारत की आज़ादी के साथ 'अमरबेल' की तरह हर जगह फैली हुयी है जहाँ से कोई दूसरा न घूसने पाए यानि वही रहें उनकी बिरादरी कैसी भी हो हटने न पाए.
आईये अब देखा जाय लूट का हिसाब किताब -
राष्ट्रमंडल खेल - लूट में शरीक लोगों की सूची-अप्रकाशित कमजोर लोगों की जाँच .
2G घोटाला - मंत्री बाहर - बाकी सब सामान्य - जाँच आयोग का गठन संसद ठप्प .
इनके अलावा आर्थिक सुधारों के नाम पर पूरी लूट अलग अलग तरीके से की जा रही है यहाँ जो सबसे बड़ी लूट हो रही है उसका असर सामाजिक सुधारों के रोकने पर लगाया गया है, इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री से मुफीद और कोई आदमी नहीं हो सकता इस लूट में पूरी छूट अलग अलग मुद्दों पर मिली हुयी है. शायद नीरज ने इसी किसी लूट या लुटने की बात कर रहे हैं.
इनके अलावा आर्थिक सुधारों के नाम पर पूरी लूट अलग अलग तरीके से की जा रही है यहाँ जो सबसे बड़ी लूट हो रही है उसका असर सामाजिक सुधारों के रोकने पर लगाया गया है, इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री से मुफीद और कोई आदमी नहीं हो सकता इस लूट में पूरी छूट अलग अलग मुद्दों पर मिली हुयी है. शायद नीरज ने इसी किसी लूट या लुटने की बात कर रहे हैं.
स्वपन झरे फूल से, मीत चुभें शूल से
लुट गए श्रृंगार सभी, बाग़ के बबूल से
और हम खड़े खड़े, बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे ||
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
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तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
जग से निंदित और उपेक्षित,
होकर अपनों से भी पीड़ित,
जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
जग से निंदित और उपेक्षित,
होकर अपनों से भी पीड़ित,
जब मानव ने कंपित कर से हा! अपनी ही चिता बनाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
सांध्य गगन में करते मृदु रव
उड़ते जाते नीड़ों को खग,
हाय! अकेली बिछुड़ रही मैं, कहकर जब कोकी चिल्लाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
उड़ते जाते नीड़ों को खग,
हाय! अकेली बिछुड़ रही मैं, कहकर जब कोकी चिल्लाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
झंझा के झोंकों में पड़कर,
अटक गई थी नाव रेत पर,
जब आँसू की नदी बहाकर नाविक ने निज नाव चलाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
अटक गई थी नाव रेत पर,
जब आँसू की नदी बहाकर नाविक ने निज नाव चलाई!
तब मेरी पीड़ा अकुलाई!
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
लूट-मंच की पहली पोस्ट-परदे में रहने दो परदा उठ गया तो भेद खुल जायेगा
मुलायम कहें तो सारे राज खोल दूं: अमर
Dec 18, 01:05 am
आजमगढ़। लोकमंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सांसद अमर सिंह ने कहा कि समाजवादी पार्टी के नेता जो भाषा बोल रहे अगर वही बात पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कहें तो वह सारे राज खोलने को तैयार हैं।
अमर सिंह ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि लोग मुझे दल्ला और सप्लायर कहते है, मुलायम सिंह यादव बताए कि मैंने उन्हें क्या सप्लाई किया। उन्होंने शायराना अंदाज में कहा कि जिन्दगी का रास्ता हमें बताया मौत ने, हम तैयार हुए तो जीना आ गया।
सपा नेता आजम खां के इस आरोप में कि अमर सिंह सप्लायर है, उन्होंने कहा कि जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री थे तब मैंने उन्हें क्या सप्लाई किया है यह वह खुद ही बता दें। उन्होंने कहा कि सपा मुखिया अपने नेताओं पर अंकुश लगाए जो अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे है। उन्होंने अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव और बलराम यादव को चुनौती देते हुए कहा कि वह बार बार हमें चुनौती देकर कह रहे कि वह राज खोल दें।
उन्होंने रैली को संबोधित करते हुए इन नेताओं को सलाह दी कि वह अपने मुखिया से कहे कि वह इस तरह की मांग स्वयं करें और इस दिशा में वे उनके निश्चित रुप से कृतज्ञ होंगे।
अमर सिंह ने कहा कि अगर मुलायम सिंह यादव उनसे यही बात कहे तो आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में वह सभी राज खोलने को तैयार हैं। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती को पूर्वाचल राज्य के मामले पर केंद्र सरकार को पत्र लिखे जाने के बाबत कहा कि मायावती की प्रदेश में बहुमत की सरकार है। वह विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र को लिखे तो अच्छा होगा।
( दैनिक जागरण से साभार -डॉ.लाल रत्नाकर)
अमर सिंह जी अदभूद आदमी है जिसके साथ रहे उसी का अंत कर दिये,कई नाम है पर उन्हें परेशानी है की मुलायम परिवार बच कैसे गया ! चलिए नियति का विधान है मुलायम सिंह यादव को इनसे भी गच्चा खाना था सो दे गए. वैसे तो यह अपने को इतिहास पुरुष बनाने में लगे है पर इनका इतिहास जो जानते हैं वह बताते है की यह किसी के सगे नहीं है |
अमर सिंह जी अदभूद आदमी है जिसके साथ रहे उसी का अंत कर दिये,कई नाम है पर उन्हें परेशानी है की मुलायम परिवार बच कैसे गया ! चलिए नियति का विधान है मुलायम सिंह यादव को इनसे भी गच्चा खाना था सो दे गए. वैसे तो यह अपने को इतिहास पुरुष बनाने में लगे है पर इनका इतिहास जो जानते हैं वह बताते है की यह किसी के सगे नहीं है |
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