लूट-मंच.....
लूटिये और खुश रहिये !
शनिवार, 10 अक्तूबर 2020
जाटों में यदि यह स्वाभिमान .
मैंने उसी दिन कहा था कि यह जाटों के स्वाभिमान पर हमला है। जाटों में यदि यह स्वाभिमान, जग गया तो निश्चित तौर पर एक तूफान खड़ा होगा, यह सब निर्भर करेगा कि जाट स्वाभिमान किस हद तक आगे बना रहता है। जैसा कि जाहिर है कि भाजपा ने जाटों के गढ़ में सेंध लगाकर अपने सांसद और मंत्री बना रखे हैं जो जाट स्वाभिमान के बजाय पाखंड और हिंदुत्व के मुद्दे और अपनी संघीय स्वाभिमान की छुपी हुयी निति पर अपनी रोटी सेक रहे हैं।
जहां तक चौधरी चरण सिंह का सवाल है चौधरी साहब किसान को भगवान मानते थे। उन्हें राष्ट्र की रीढ़ मानते थे, जिसे संघियों और आधुनिक आर्य समाजियो ने धर्मभीरु बना दिया है। मेरा मानना है कि चौ चरण सिंह जी जैसा व्यक्ति जो धर्म के मर्म को समझते थे और पाखंड के खिलाफ बोलते भी थे, परंतु उनके बाद के राजनेताओं में इस तरह की कोई समझ दिखाई नहीं देती जिससे जनता के अंदर फैलाए जा रहे हिंदू मुसलमान के बंटवारे का विरोध हो सके.जो लोग चौ चरण सिंह की राजनीति को जानते हैं वह अच्छी तरह जानते हैं कि चरण सिंह के साथ मुसलमान कंधे से कंधा मिला कर खड़ा था और आज भाजपा ने उसी समीकरण को तोड़ दिया है और मुसलमानों के खिलाफ जाटों और किसानों को करने में कामयाब हो गई है.यही है भाजपा की बंटवारे की नीति जब तक इस नीति को जाट समझेगा तब तक जाटों का मोहभंग नहीं होगा. क्योंकि जाटों को ऐसा लगता है कि सत्ता में उनकी भागीदारी है और यह भागीदारी किस तरह से पूरे समुदाय के लिए खतरनाक है यह संसद में किसी जाट नेता को बोलते हुए कम से कम हम लोगों ने अभी तक नहीं सुना .
जब तक अजीत सिंह जी संसद में होते थे तो वह तकनीकी तौर पर किसानों की बात रखते थे इसी के साथ चौधरी चरण सिंह के मानने वाले तमाम वरिष्ठ नेता जो धीरे धीरे धीरे धीरे अलग होते गए और आज संसद किसानों की आवाज से महरूम हो गई है जिस तरह की नीतियां संसद और संविधान को किनारे करके बनाई जा रही हैं उसकी वजह से बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि संघ और भाजपा की नियति देश की सारी संपत्ति पर उनके कुछ व्यापारियों का कब्जा हो जाए! और इसीलिए भाजपा 2014 में आते ही देश की जमीन हड़पने का कानून ले करके आई थी जिससे वह अपने पूजीपतियों को उनकी मनचाही धरती उनके हवाले करना चाह रही थी. यह बात उस समय के किसानों को कुछ समझ में नहीं आई अब उसी काम को धीरे धीरे अलग-अलग तरह के कानूनों से, पूरा करके भाजपा किसानों को बर्बाद करने पर लगी हुई है. और यह बात अभी तक बहुत कम किसान समझ पा रहे हैं उनको यह दिखाई दे रहा है कि जैसा जुमले में कहा जा रहा है कि इन कानूनों से किसानों को बहुत लाभ होगा। यह लाभ उसी तरह का होगा जिस तरह का लाभ इस सरकार की अन्य योजनाओं से जनता को हो रहा है।
आश्चर्य है चौधरी चरण सिंह को करीब से जानने वाले और उनकी पुस्तक भारतीय अर्थशास्त्र की काली रात के सहयोगी प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद आजकल भाजपा के जुमलेबाजी को भारत की विकास नीतियों से जुड़ने लगे हैं चाहे वह विदेश नीति हो चाहे वह सामाजिक नीति हो चाहे वह राजनीतिक नीति हो और चाहे वह उसकी धार्मिक नीति हो. मैंने उनसे कई बार की बातचीत में यह जाने की कोशिश किया है कि क्या सचमुच वह संघ के विचारों को महत्व देने लगे हैं इस बात को नकारते हुए वह आजकल मोदी की प्रशंसक बने हुए हैं उनकी यही सज्जनता उनकी विद्वता को उनके जीवन में कई बार कमजोर करती आई है हालांकि उनकी, वैचारिकी के पीछे कांग्रेस के जमाने की ब्रह्मणवादी नीतियां और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उनके साथ हुए भेदभाव को माना जा सकता है उनका कहना है कि "नेहरूजी देश को जिस रास्ते पर लेकर गए उससे जिस तरह का विकास हुआ वह विकास आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया और कांग्रेस को समूल हटा करके यह सरकार कम से कम भारतीयता को बढ़ा रही है"!
प्रोफ़ेसर साहब तब मौन हो जाते हैं जब उनसे यह सवाल किया जाता है कि संविधान को तोड़ मरोड़ करके सारी संवैधानिक संस्थाओं को व्यापारियों के हित में खड़ा करके कौन सा काम यह सरकार कर रही है। इस सरकार ने रोजगार और सरकारी उपक्रमों को अपने व्यापारियों को बेच करके किस तरह का देश बनाने जा रही है। जब देश पर चीन के द्वारा इतने बड़े बड़े हमले किए जा रहे हो और मौजूदा सरकार चुप हो तो वह यह बात कह कर के अपनी जानकारी को जिस तरह से ठोकते हैं। उसमें रक्षा मामलों का , हवाला देते हुए यह बताते हैं कि इतनी तोपें कितने लड़ाकू हवाई जहाज इस सरकार में खरीदे गए हैं। जिससे देश की सैन्य शक्ति बहुत मजबूत हुई है। प्रोफ़ेसर साहब को कौन बताए की जिस तरह से यह सरकार जुमले और नफरत फैलाकर एक विशेष तरह का आडंबर फैला रही है उससे निश्चित तौर पर वह प्रभावित और दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं है।
दूसरी तरफ उनका यह भी मानना है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी को देश का कौन सा ज्ञान है। एक तो विदेशी है जो इस देश की आत्मा को समझती ही नहीं है और दूसरे उसका बेटा है जो कठिनाइयां देखा ही नहीं है उसके हाथ इस देश को कैसे सौंपा जा सकता है उनकी यह बात उनकी यह पीड़ा समझ में जरूर आती है लेकिन जींस विचारधारा और तौर-तरीकों से मौजूदा सरकार देश को पूजी पतियों के हाथों में सौंप रही है उस पर प्रोफेसर साहब चुप हो जाते हैं.
यह घालमेल का माहौल बार-बार उन्हें झकझोरता है और वह टेलीफोन पर, जितनी बात करते हैं उसमें मौजूदा सरकार के प्रति उनका आकर्षण और उसकी कमियों पर चुप हो जाना अक्सर बहुत खटकता है.
उनके इस बदले हुए रूप के साक्षी डॉ मनराज शास्त्री जी भी हैं पिछले दिनों जब वह दिल्ली आए थे और शास्त्री जी भी दिल्ली में थे तो मैं उनके साथ प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद जी के घर गया था। यहां पर उनसे बातचीत हुई तो शास्त्री जी भी आश्चर्यचकित थे कि सरकार के द्वारा संविधान और सामाजिक न्याय के ऊपर कुठाराघात हो रहा हो उसके इतने पक्षधर प्रोफेसर ईश्वरी प्रसाद जी हो जाएंगे यह बात आश्चर्यचकित करने वाली थी। मैं चाहूंगा कि डॉ शास्त्री उनके उस बातचीत के छोटे से समय को किस रूप में देखते हैं उससे एक स्वतंत्र रूप से अपने किसी लेख में लिखें जिससे प्रोफ़ेसर ईश्वरी प्रसाद जी जो एक जमाने में सामाजिक न्याय और दलित चेतनाओं पर पुस्तके लिखे हैं उन्हें इस सरकार में क्या ऐसी खूबी दिखाई दे रही है जबकि चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है।
अब हम फिर आते हैं जाट आंदोलन पर जाट आंदोलन खड़ा करना समय की मांग है। क्योंकि जाटों का जो दबाव क्षेत्र है वह दिल्ली के इर्द गिर्द फैला हुआ है। यदि जाटों और गुर्जरों में यह चेतना आ जाए की मौजूदा सरकार उनके अधिकारों पर हमला कर रही है। और जिसे उन्हें बचाना है तो निश्चित तौर पर एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है और उस आंदोलन को नेतृत्व देने के लिए भक्तों की नहीं सजग और चेतना युक्त समाज से निकलकर के लोग आगे आएं। जो इन आंदोलनों को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी उठाएं। तो मैं समझ सकता हूं कि हम अभी भी इस निरंकुश सरकार को रोकने में कामयाब हो सकते हैं। ऐसा नहीं है की धरती वीरों से खाली हो गई है। बहुत सारे ऐसे नेताओं को मैं जानता हूं जो यदि नए सिरे से इस सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़े हो तो जनता उनकी सुनेगी।
लेकिन जो सबसे बड़ा डर है, वह यह है कि जो छोटे-छोटे छत्रप अनेक राज्यों में यह समझते हैं कि यदि नए लोग आ गए तो उनके राजपाट का क्या होगा। यह वही लोग हैं असली दुश्मन हैं किसानों के और सामाजिक न्याय की नीतियों के इसलिए नए नेतृत्व की खिलाफ वह दुश्मन के साथ होंगे और भीतर से इस नए आंदोलन को कमजोर करने की पुरजोर कोशिश करेंगे क्योंकि मौजूदा राजनीतिक ताकत हर तरह से उसके खिलाफ कोई विरोध न खड़ा हो उसके लिए तमाम ऐसी ताकतों को कमजोर करके रखती है। या विरोधियों को द्वारा रखा है। जो विरोध में खड़े होने का साहस भी करते ऐसे में जनता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। और उसे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं आगे आने की हिमाकत करनी होगी। और अपने बीच से ईमानदार और चरित्रवान नेतृत्व को विकसित करना होगा ऐसे अवसर पर उन तमाम युवाओं को जो बेरोजगार हो चुके हैं या जिन्हें रोजगार मिलने की उम्मीद नहीं है। झूठ और जुल्मों से उन्हें भरमा करके ऐसी स्थिति में छोड़ा जाएगा। जब वह किसी लायक नहीं होंगे मैंने देखा है पढ़े लिखे लोगों में किस तरह से वह भक्त हो करके अपनी सोच और समझ को गिरवी रख चुके हैं। और उन मूर्खों के गुलाम बन गए जो उन्हें सदियों से मूर्ख बना करके गुलामी कराते आए हैं।
उम्मीद है की किसान जातियों में एक नई चेतना जागेगी और वह ऐसी जुमलेबाजी और झूठ की व्यवस्था को तोड़ने के लिए कमर कस कर आगे आएंगे और उम्मीद है ईमानदारी और जिम्मेदारी से आगे बढ़ेंगे तो ऐसे लोग जो देश को लूट रहे हैं उनसे देश को बचाया जा सकेगा.
- डा लाल रत्नाकर
रविवार, 4 अक्तूबर 2020
रविवार, 26 अप्रैल 2015
Gajendra Singh Rajput
An elegy for Gajendra Singh Rajput: How many farmers really commit suicide?
Apr 26, 2015 16:47 IST
by Javed Iqbal
Gajendra Singh Rajput’s death is the atrocity of the week in an age of atrocities. A man standing high above a crowd, is soon hanging from a tree branch, whether suicide or accident. If he truly did wish to die, I wonder what he felt in those last few moments of his life, what he thought as he saw a sea of people under him, some jeering, some asking him to come down: did he feel he was truly and finally alone? Did he feel at peace at the knowledge that it would be no more? Yet like all farmers in a mainstream discourse, he is first a victim, and his death, is now a very public suicide in a sea of silent suicides.
As victims, do farmers become helpless and hapless or can the farmer rebel? In the mainstream perception, farmers are not meant to stand up and fight back against systematic structural violence.
So how many farmers committed suicide standing in front of the bullets fired by the police on 2 January, 2006, when they were protesting against the Tata’s industrial corridor at Kalinganagar, Odisha? Or at Nandigram, Singur, or Bhatta Parsaul just a few years ago? Or at Forbesganj in Bihar on the 2 July, 2010, protesting against the blocking of their road by a private company? Or at Sompeta in Andhra Pradesh when they (fishermen/fisherwomen, not just farmers) committed suicide standing in front of more police bullets, protesting against a thermal power plant? How many farmers committed suicide in Bihar in the 1980’s and 1990’s when the Ranvir Senas of the world came and murdered them at Bathani Tola or Laxmanpur-Bathe, after they stood up for their land rights? How many of them committed suicide again when they went to the courts and had to watch their Bhumihar murderers get acquitted by the courts?
How many farmers committed suicide on this year’s Ambedkar Jayanti by standing in front of police bullets at Kanhar Valley, Sonbhadra, Uttar Pradesh, protesting against the Kanhar dam? And again when they were fired upon four days later? Well, the police chased away the media and the human rights activists from there. And then there are those pesky farmers committing suicide again by submerging themselves in rising waters as a protest against the whole Narmada nonsense at Omkareshwar, which has gone on for too long anyway.
How many farmers, I mean labourers, I mean farm-labourers, I mean Dalits, I mean Maha-dalits, I mean Dalit farmers, I mean people who want land to survive/sustain themselves, commit suicide when they stand up to the landed castes? How many farmers are murdered by other farmers of dominant castes when they merely stand up for their dignity? When they fight for their land, their identity, their right to equality?
How many farmers, I mean Adivasis, I mean Adivasi farmers, have committed suicide by protesting against private corporations and public mining companies since independence?
How many Adivasi farmers committed suicide by jumping in front of the railway tracks leading to Rourkela, Odisha on 20 January, 2015, protesting against losing their Adivasi rights (PESA) to the forcible establishment of the Rourkela Municipal Corporation? Those adivasis stopped a train actually, the train committed suicide there. These adivasis farmers of Sundergarh committed suicide by blockading the entire steel town of Rourkela, for they certainly didn’t want to die, or to give up, they wanted the state to stop and listen, they wanted the courts to pay attention.
How many farmers whose homes and grains were burnt down by the police and the Salwa Judum in Bastar, Chhattisgarh since 2004 have committed suicide by joining the CPI Maoist party? How many farmers have committed suicide by being tortured by the police for information about the above mentioned ‘rebels’? How many farmers have committed suicide by their protest when the administration called them ‘Maoist’ just because they had said no to the state’s idea of development? And how many sons of farmers have committed suicide by joining the CRPF and fighting an insurgency which is not their war?
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Did Dasrath Majhi commit suicide by chiseling through a mountain so his village could have access to a hospital? How many farmers commit suicide during childbirth thanks to inadequate healthcare infrastructure with further thanks to a budget allocation that doesn’t focus on public healhcare? How many sons and daughters of farmers commit suicide by dying of malnutrition, thanks to the fact that there still isn’t a universal public distribution system?
How many farmers commit suicide when they argue sustainability and environment, against industrial development and mining, with the free market economists who don’t listen? How many farmers fought and protested against debt and GM crops, before they committed suicide?
So really, how many farmers really commit suicide by fighting back? How many farmers refuse to be victims?
No, no farmer ever commits suicide.
MORE IN INDIA
Apr 26, 2015 16:47 IST
by Javed Iqbal
Gajendra Singh Rajput’s death is the atrocity of the week in an age of atrocities. A man standing high above a crowd, is soon hanging from a tree branch, whether suicide or accident. If he truly did wish to die, I wonder what he felt in those last few moments of his life, what he thought as he saw a sea of people under him, some jeering, some asking him to come down: did he feel he was truly and finally alone? Did he feel at peace at the knowledge that it would be no more? Yet like all farmers in a mainstream discourse, he is first a victim, and his death, is now a very public suicide in a sea of silent suicides.
As victims, do farmers become helpless and hapless or can the farmer rebel? In the mainstream perception, farmers are not meant to stand up and fight back against systematic structural violence.
So how many farmers committed suicide standing in front of the bullets fired by the police on 2 January, 2006, when they were protesting against the Tata’s industrial corridor at Kalinganagar, Odisha? Or at Nandigram, Singur, or Bhatta Parsaul just a few years ago? Or at Forbesganj in Bihar on the 2 July, 2010, protesting against the blocking of their road by a private company? Or at Sompeta in Andhra Pradesh when they (fishermen/fisherwomen, not just farmers) committed suicide standing in front of more police bullets, protesting against a thermal power plant? How many farmers committed suicide in Bihar in the 1980’s and 1990’s when the Ranvir Senas of the world came and murdered them at Bathani Tola or Laxmanpur-Bathe, after they stood up for their land rights? How many of them committed suicide again when they went to the courts and had to watch their Bhumihar murderers get acquitted by the courts?
How many farmers committed suicide on this year’s Ambedkar Jayanti by standing in front of police bullets at Kanhar Valley, Sonbhadra, Uttar Pradesh, protesting against the Kanhar dam? And again when they were fired upon four days later? Well, the police chased away the media and the human rights activists from there. And then there are those pesky farmers committing suicide again by submerging themselves in rising waters as a protest against the whole Narmada nonsense at Omkareshwar, which has gone on for too long anyway.
How many farmers, I mean labourers, I mean farm-labourers, I mean Dalits, I mean Maha-dalits, I mean Dalit farmers, I mean people who want land to survive/sustain themselves, commit suicide when they stand up to the landed castes? How many farmers are murdered by other farmers of dominant castes when they merely stand up for their dignity? When they fight for their land, their identity, their right to equality?
How many farmers, I mean Adivasis, I mean Adivasi farmers, have committed suicide by protesting against private corporations and public mining companies since independence?
How many Adivasi farmers committed suicide by jumping in front of the railway tracks leading to Rourkela, Odisha on 20 January, 2015, protesting against losing their Adivasi rights (PESA) to the forcible establishment of the Rourkela Municipal Corporation? Those adivasis stopped a train actually, the train committed suicide there. These adivasis farmers of Sundergarh committed suicide by blockading the entire steel town of Rourkela, for they certainly didn’t want to die, or to give up, they wanted the state to stop and listen, they wanted the courts to pay attention.
How many farmers whose homes and grains were burnt down by the police and the Salwa Judum in Bastar, Chhattisgarh since 2004 have committed suicide by joining the CPI Maoist party? How many farmers have committed suicide by being tortured by the police for information about the above mentioned ‘rebels’? How many farmers have committed suicide by their protest when the administration called them ‘Maoist’ just because they had said no to the state’s idea of development? And how many sons of farmers have committed suicide by joining the CRPF and fighting an insurgency which is not their war?
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Did Dasrath Majhi commit suicide by chiseling through a mountain so his village could have access to a hospital? How many farmers commit suicide during childbirth thanks to inadequate healthcare infrastructure with further thanks to a budget allocation that doesn’t focus on public healhcare? How many sons and daughters of farmers commit suicide by dying of malnutrition, thanks to the fact that there still isn’t a universal public distribution system?
How many farmers commit suicide when they argue sustainability and environment, against industrial development and mining, with the free market economists who don’t listen? How many farmers fought and protested against debt and GM crops, before they committed suicide?
So really, how many farmers really commit suicide by fighting back? How many farmers refuse to be victims?
No, no farmer ever commits suicide.
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रविवार, 14 अप्रैल 2013
अमर सिंह की तल्खी -
'आजम के इशारे पर उतारी जया की कार की लाल बत्ती'
लखनऊ/ब्यूरो | Last updated on: April 15, 2013 12:23 AM IST
सांसद जयाप्रदा की गाड़ी से लालबत्ती उतारे जाने से तमतमाए सांसद अमर सिंह ने कहा है कि यह कार्रवाई संसदीय कार्यमंत्री आजम खां के इशारे पर की गई है।
उन्होंने आजम की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी की मांग करते हुए कहा कि जब तक वह मंत्रिमंडल में रहेंगे, महिलाओं के साथ बदसलूकी नहीं रुक सकती।
उन्होंने लालबत्ती उतारने के दौरान वहां के एआरटीओ कौशलेंद्र यादव पर सांसद के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव से उन्हें निलंबित कर कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि तीन दिन में इन पर कार्रवाई नहीं हुई तो जयाप्रदा हाईकोर्ट जाएंगी।
अमर सिंह गोमतीनगर स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बात कर रहे थे। सिंह ने कहा कि उन्होंने गुर्दाविहीन शरीर से इस पार्टी की सेवा की। जब मुलायम सिंह के साथ कोई नहीं था, तब संजय दत्त की सभाएं करवाता रहा। तब आजम खां मुलायम को भला-बुरा कहते थे। बाद में आजम खां को पार्टी में ले लिया गया और उन्हें निकाल दिया गया। आज आजम खां उस संजय दत्त को जेल भेजे जाने की वकालत कर रहे हैं।
सिंह ने कहा कि उनके सपा से निकाले जाने के बाद जयाप्रदा उनके साथ बनी रहीं जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार यदि महिला आईएएस अफसर और अभिनेत्री हेमामालिनी व श्रीदेवी की खूबसूरती पर टिप्पणी के लिए एक कैबिनेट मंत्री को बर्खास्त कर सकती है तो उसे महिला सांसद के साथ मर्यादाविहीन आचरण कराने वाले मंत्री आजम खां को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए।
मायावती और सुषमा से मिलकर मदद मांगेंगी
अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा के साथ उसी तरह दुर्व्यवहार हुआ जैसा कि बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ गेस्टहाउस कांड में हुआ था। उन्होंने कहा कि जयाप्रदा मायावती और सुषमा स्वराज से मिलकर मदद मांगेंगी। केंद्रीय महिला आयोग तो जाएंगी ही, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से मिलकर विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी देंगी। इसके अलावा मामले को राष्ट्रपति तक ले जाया जाएगा।
मुलायम सिंह को भी निशाने पर लिया
अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा मुलायम को पिता और अखिलेश को भाई कहती हैं। एक भाई तो बहन के लिए कुछ भी कर सकता है, क्या सीएम इस पर कार्रवाई कर पाएंगे। उन्होंने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का नाम लेते हुए कहा कि यदि उनकी बहू के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार होता तो उन्हें कैसा लगता? मगर वे चुप्पी साधे रहेंगे। अमर सिंह ने कहा कि उन्होंने जयाप्रदा को किसी भी दल में जाने के लिए छूट दे दी है।
हो सकता है कल मुझे सपा दलाल कहने लगे
सांसद अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा के लिए आवाज उठाने पर हो सकता है सपा के नेता उन्हें दलाल, सप्लायर, कूड़ेदान, बेशर्म, धोखेबाज, कमीना, बेईमान कहने लगें। मगर मैं यह कहना चाहता हूं कि जो भी था, मुलायम सिंह के लिए ही था। वह ऐसा सुनते-सुनते थक चुके हैं। बेनी और उनकी मुलाकात से जुड़ा सवाल हुआ तो सिंह ने कहा कि दो सताए हुए मिलते हैं तो हाय-हाय ही करेंगे। अपने मन की बात कहने के लिए उन्होंने पार्टी बनाई थी। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि वह कल्याण सिंह से बड़े नेता हैं, इसका भ्रम कभी नहीं रहा।
नरेश जयाप्रदा के पक्ष में
सांसद जयाप्रदा की गाड़ी से लालबत्ती उतारे जाने के मामले में सपा सांसद नरेश अग्रवाल उनके पक्ष में बोले। अग्रवाल ने कहा कि सांसद की गाड़ी से लालबत्ती उतारा जाना गलत है। प्रदेश में यदि किसी ने ऐसा किया है तो गलत किया। ऐसा करने वाले के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। नरेश के इस बयान को सपा में चल रही अंदरुनी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है।
उन्होंने आजम की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी की मांग करते हुए कहा कि जब तक वह मंत्रिमंडल में रहेंगे, महिलाओं के साथ बदसलूकी नहीं रुक सकती।
उन्होंने लालबत्ती उतारने के दौरान वहां के एआरटीओ कौशलेंद्र यादव पर सांसद के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए मुख्य सचिव से उन्हें निलंबित कर कड़ी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि तीन दिन में इन पर कार्रवाई नहीं हुई तो जयाप्रदा हाईकोर्ट जाएंगी।
अमर सिंह गोमतीनगर स्थित अपने आवास पर पत्रकारों से बात कर रहे थे। सिंह ने कहा कि उन्होंने गुर्दाविहीन शरीर से इस पार्टी की सेवा की। जब मुलायम सिंह के साथ कोई नहीं था, तब संजय दत्त की सभाएं करवाता रहा। तब आजम खां मुलायम को भला-बुरा कहते थे। बाद में आजम खां को पार्टी में ले लिया गया और उन्हें निकाल दिया गया। आज आजम खां उस संजय दत्त को जेल भेजे जाने की वकालत कर रहे हैं।
सिंह ने कहा कि उनके सपा से निकाले जाने के बाद जयाप्रदा उनके साथ बनी रहीं जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार यदि महिला आईएएस अफसर और अभिनेत्री हेमामालिनी व श्रीदेवी की खूबसूरती पर टिप्पणी के लिए एक कैबिनेट मंत्री को बर्खास्त कर सकती है तो उसे महिला सांसद के साथ मर्यादाविहीन आचरण कराने वाले मंत्री आजम खां को तत्काल बर्खास्त करना चाहिए।
मायावती और सुषमा से मिलकर मदद मांगेंगी
अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा के साथ उसी तरह दुर्व्यवहार हुआ जैसा कि बसपा अध्यक्ष मायावती के साथ गेस्टहाउस कांड में हुआ था। उन्होंने कहा कि जयाप्रदा मायावती और सुषमा स्वराज से मिलकर मदद मांगेंगी। केंद्रीय महिला आयोग तो जाएंगी ही, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार से मिलकर विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी देंगी। इसके अलावा मामले को राष्ट्रपति तक ले जाया जाएगा।
मुलायम सिंह को भी निशाने पर लिया
अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा मुलायम को पिता और अखिलेश को भाई कहती हैं। एक भाई तो बहन के लिए कुछ भी कर सकता है, क्या सीएम इस पर कार्रवाई कर पाएंगे। उन्होंने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का नाम लेते हुए कहा कि यदि उनकी बहू के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार होता तो उन्हें कैसा लगता? मगर वे चुप्पी साधे रहेंगे। अमर सिंह ने कहा कि उन्होंने जयाप्रदा को किसी भी दल में जाने के लिए छूट दे दी है।
हो सकता है कल मुझे सपा दलाल कहने लगे
सांसद अमर सिंह ने कहा कि जयाप्रदा के लिए आवाज उठाने पर हो सकता है सपा के नेता उन्हें दलाल, सप्लायर, कूड़ेदान, बेशर्म, धोखेबाज, कमीना, बेईमान कहने लगें। मगर मैं यह कहना चाहता हूं कि जो भी था, मुलायम सिंह के लिए ही था। वह ऐसा सुनते-सुनते थक चुके हैं। बेनी और उनकी मुलाकात से जुड़ा सवाल हुआ तो सिंह ने कहा कि दो सताए हुए मिलते हैं तो हाय-हाय ही करेंगे। अपने मन की बात कहने के लिए उन्होंने पार्टी बनाई थी। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि वह कल्याण सिंह से बड़े नेता हैं, इसका भ्रम कभी नहीं रहा।
नरेश जयाप्रदा के पक्ष में
सांसद जयाप्रदा की गाड़ी से लालबत्ती उतारे जाने के मामले में सपा सांसद नरेश अग्रवाल उनके पक्ष में बोले। अग्रवाल ने कहा कि सांसद की गाड़ी से लालबत्ती उतारा जाना गलत है। प्रदेश में यदि किसी ने ऐसा किया है तो गलत किया। ऐसा करने वाले के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। नरेश के इस बयान को सपा में चल रही अंदरुनी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है।
नोट-
अमर सिंह जी आपको रोना खूब आता है जब आप सपा में थे तब आप ऐसे तैसों को ही सपा का सांसद बनाया करते थे क्या उत्तर प्रदेश में महिलायें नहीं थीं यही थीं जिन्हें संसद में भेजना था, मुलायम की ही कुवत थी की आप को नेता होने की गलत फहमी हो गयी थी अन्यथा तो आपका असली पेशा 'दलाली ही है' और आगे भी यही करिए इससे ज्यादा आपको कहीं जगह नहीं मिलनी है.
मंगलवार, 5 जून 2012
लूट की छूट और उत्तर प्रदेश की दलित राजनीती
खास दरबारी ही बने अंटू की मुसीबत
Jun 05, 07:54 pm
लखनऊ [आनन्द राय]। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र उर्फ अंटू मिश्र एनआरएचएम घोटाले की जांच के शुरुआती दौर से ही सीबीआइ की हिट लिस्ट में रहे, लेकिन उनके खास दरबारियों ने उनकी मुसीबत और बढ़ा दी। जांच के गति पकड़ते ही अंटू के चहेते ठेकेदार उनका कच्चा चिट्ठा खोलने लगे। उन्होंने जिन सीएमओ को अपना समझकर मलाईदार जिलों में तैनाती दी वह भी उनका राज छुपा न सके।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ अब एनआरएचएम घोटाले में अंटू मिश्र को चौतरफा घेर चुकी है। जांच की शुरुआत में अंटू के खिलाफ सबसे पहले पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने जुबान खोली थी, लेकिन तब सीबीआइ के पास अंटू के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। अंटू को शिकंजे में लेने के लिए सीबीआइ ने उनके खास सीएमओ और चहेते ठेकेदारों की सूची तैयार की और फरवरी के आखिरी हफ्ते में छापेमारी की। तब कुछ सीएमओ मौके से भाग गये, लेकिन जो पकड़ में आये, उन्होंने सीबीआइ को एनआरएचएम की दास्तां सुनाई और सबने अंटू के ही सिर घोटाले का ठीकरा फोड़ा। इनमें कई सीएमओ ने बाबू सिंह की भी करतूतें बताई।
उल्लेखनीय है कि वाराणसी में सीएमओ रहे डाक्टर आरएस वर्मा, बस्ती में डॉ जीपी वर्मा, गोरखपुर में डॉ आरएन मिश्र, मेरठ में डाक्टर प्रेमप्रकाश, वाराणसी में संयुक्त निदेशक डॉ आरएन यादव, श्रावस्ती के सीएमओ डॉ सी प्रकाश, कई जिलों में सीएमओ रहे पटना निवासी डाक्टर विभूति प्रसाद, कन्नौज में एसीएमओ डाक्टर हरिश्चंद्र, सीनियर कंसलटेंट पैथोलॉजी गोरखपुर डाक्टर सिलोइया, बहराइच के डॉ हरि प्रकाश, गोंडा में एसीएमओ डॉ एके श्रीवास्तव, डॉ एसपी पाठक और वाराणसी में रह रहे बलिया के सीएमओ पद से सेवानिवृत्त केएम तिवारी जैसे कई मौजूदा और पूर्व सीएमओ थे, जिनकी पकड़ या तो बिचौलियों के जरिए या सीधे अंटू मिश्र तक थी। यह सभी लोग अंटू के यहां नियमित दरबार लगाते थे और इन सबके माडल लखनऊ के तत्कालीन सीएमओ डाक्टर एके शुक्ला थे। सीबीआइ ने फरवरी में जब इनके यहां एक साथ छापेमारी की तो कई लोग टूट गये। इन लोगों ने ही घोटाले के तौर तरीकों से लेकर हिस्सेदारों तक के नाम बताये। डाक्टर एके शुक्ला ने तो अंटू पर आरोपों की झड़ी लगा दी थी। इस बीच अंटू के खास बिचौलिए वाराणसी के दवा कारोबारी महेंद्र पाण्डेय और 18 जिलों में दवा का काम करने वाले रइस अहमद उर्फ गुड्डू खान का नाम उजागर हुआ, जिनकी संस्तुति पर सीएमओ 15 से 20 लाख रुपये में तैनात किये जाते थे। सीबीआइ ने महेंद्र एवं गुड्डू की भी घेरेबंदी कर दी। तैनाती के बदले में दवा खरीद में लाभ पहुंचाने, फर्जी बिलों को स्वीकृति देने, दवाओं का ठेका दिलवाने में इन सबने पाण्डेय, गुड्डू खान और उनके करीबियों को लाभ मिलने की बात भी सामने आ गई।
कुशवाहा ने बनाया एक और गुट :
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का बंटवारा हुआ तो कुशवाहा ने विधायक रामप्रसाद जायसवाल के नेतृत्व में एक बड़ा गुट खड़ा कर दिया। सर्जिकान मेडिक्वीप के एमडी गिरीश मलिक, सौरभ जैन, गुडडू खान, नरेश ग्रोवर, आरके सिंह और अधिकारियों की एक टीम काम करने लगी। इनके अलावा परदे के पीछे और भी बहुत से लोग सहायक बने। मेरठ में सीएमओ परिवार कल्याण रहे पीपी वर्मा समेत और कई सीएमओ उनके करीब हो गये। अंटू के करीबी सीएमओ ने भी उनसे रिश्ते बना लिए। बताते हैं कि बाद के दिनों में घोटाले में बाबू सिंह का वर्चस्व बढ़ गया। कुशवाहा ने महेंद्र पाण्डेय के प्रतिस्पर्धी मानवेंद्र को भी उभारा।
तैनाती का कनेक्शन तलाश रही सीबीआइ :
सीबीआइ एनआरएचएम घोटाले के दौरान सूबे में तैनात होने वाले सीएमओ और उनको तैनाती दिलाने वाले बिचौलियों का भी कनेक्शन तलाश रही है। सीबीआइ को यह जानकारी मिली है कि कई ऐसे सीएमओ थे जो खुद अपने सहयोगियों और साथियों की पोस्टिंग कराते थे। इन सीएमओ के बारे में सीबीआइ को यह भी खबर है कि मंत्री अंटू मिश्र और कुशवाहा की गैर जानकारी में भी यह घोटाला करके रकम हड़पते थे। इनकी शीघ्र गिरफ्तारी हो सकती है।
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अखिलेश जी के पास अन्टू जैसे लोग कहाँ !
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बुधवार, 23 मई 2012
पत्रकार
ये कैसे कैसे पत्रकार -
(दैनिक जागरण की इस खबर को देखिये खबर और और चित्र कहीं का .)
पूर्व प्रधान की हत्या मामले में छह गिरफ्तार
May 23, 07:54 pm
हापुड़, जागरण संवाद केंद्र : दस दिन पहले किठौर रोड पर हुई अतराड़ा के पूर्व प्रधान राकेश त्यागी की हत्या का पुलिस ने बुधवार को खुलासा कर दिया। पुलिस ने छह हत्यारोपियों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से हत्या में प्रयुक्त एक पिस्टल व एक बंदूक के अलावा दो कार भी बरामद की है। राकेश की हत्या पुरानी रंजिश और अपना वर्चस्व कायम करने के लिए की गई थी। इसी रंजिश में मृतक के एक भाई विरेंद्र की छह वर्ष पहले हत्या कर दी गई थी।
गौरतलब है कि अतराड़ा की प्रधान कुसुम त्यागी के पति देवेंद्र पहलवान के भाई और पूर्व प्रधान राकेश त्यागी की कार सवार चार बदमाशों ने किठौर रोड स्थित शिवम कोल्ड स्टोरेज के पास उस समय हत्या कर दी थी। जब वह 13 मई की तड़के साढ़े पांच बजे अपनी मोटरसाइकिल से गांव लौट रहा था। राकेश मेरठ रोड स्थित चामुंडा पेपर मिल में सुपरवाइजर के रूप में कार्यरत था। बदमाश उसकी लाइसेंसी रिवाल्वर भी लूटकर ले गए थे। बुधवार को पुलिस अधीक्षक अब्दुल हमीद ने हत्याकांड का खुलासा करते हुए बताया कि इस मामले में रवि गुर्जर पुत्र जगदीश निवासी गोहरा, दिनेश शर्मा पुत्र मेघनाथ निवासी बवनपुरा खरखौदा, चंद्रप्रकाश त्यागी पुत्र नंदकिशोर व उसके पुत्र अतुल त्यागी, ओमकार निवासी मुरादपुर गजरौला, लाला उर्फ मेहर सिंह निवासी हिम्मतपुर सिंभावली को गिरफ्तार किया गया है। उनके कब्जे से हत्या में प्रयुक्त एक पिस्टल, एक दोनाली बंदूक, कारतूस तथा वैगनआर कार संख्या डीएल 8 सीएनबी 5343 व एक स्कार्पियो कार संख्या यूपी 16 जेड 4019 के अलावा साढ़े 34 हजार रुपये बरामद किए गए है। एसपी के अनुसार राकेश त्यागी की हत्या की योजना अजराड़ा निवासी इंतजार के यहां तैयार की गई थी, जिसमें असौड़ा निवासी रिफाकत भी शामिल था। घटना को अंजाम देने के लिए इंतजार ने शूटरों को तीन लाख रुपये देने का वादा किया, जिसके बाद 12 मई को रिफाकत ने रवि को फोन पर सूचना दी कि राकेश फैक्ट्री में नाइट ड्यूटी पर है और 13 मई की सुबह पांच से छह बजे के बीच मोटरसाइकिल से घर वापस जाएगा। इसके चलते वैगनआर कार में सवार रवि, संजय गुर्जर, फिरोज व राजकुमार त्यागी ने फैक्ट्री से निकलते ही राकेश का पीछा शुरू कर दिया और किठौर रोड पर उसे घेरकर ताबड़तोड़ गोली बरसाकर उसकी हत्या कर दी। इस मामले में रिफाकत के अलावा दिनेश पंडित व अतुल त्यागी ने भी राकेश की रेकी की। हत्या के बाद हमलावर राकेश की मौत की पुष्टि कर उसकी लाइसेंसी रिवाल्वर भी अपने साथ ले गए थे। इस रिवाल्वर को पुलिस अभी तक बरामद नहीं कर पाई है। एसपी ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त कार सात मई को दिल्ली के अपोलो अस्पताल के बाहर से चोरी की गई थी। इस हत्याकांड को खुलासा करने वाली टीम को पुलिस अधीक्षक ने पांच हजार रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की है। गौरतलब है कि राकेश के छोटे भाई विरेंद्र त्यागी उर्फ बबली की भी 17 अप्रैल 2006 को आवास विकास कालोनी में दिन निकलते ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में भी चंद्रप्रकाश त्यागी व रवि गुर्जर आरोपी हैं। इस हत्याकांड में रवि के अलावा उसके दो भाई संतरपाल और नीरज भी शामिल थे। पुलिस के अनुसार संतरपाल और नीरज इस हत्याकांड की साजिश में भी शामिल हैं लेकिन खुद को बचाने के लिए वह हत्या से एक दिन पहले ही एक मामले में जमानत रद कराकर जेल चले गए थे। हालांकि बाद में उन्होंने फिर से अपनी जमानत करा ली।
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
खुले आम खतरे.......
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मऊ में 4 घंटे से ज्यादा चली मुठभेड़, कोतवाल शहीद | |||
सरसेना (मऊ)/अमर उजाला ब्यूरो | |||
Story Update : Thursday, April 19, 2012 12:51 AM | |||
जिले के चिरैयाकोट थाना क्षेत्र के मठिया गांव के एक घर में छिपे बदमाशों के साथ बुधवार सुबह चार घंटे से अधिक चली मुठभेड़ में शहर कोतवाल शहीद हो गए, जबकि पुलिस ने भाग रहे दो बदमाशों का पीछाकर मार गिराया।
दोनों बदमाश खुद को बचने के लिए जिस घर में घुसे थे, उस परिवार को बंधक बना लिया और पुलिस पर गोलियां बरसाते रहे। इसी दौरान बदमाशों ने गृहस्वामी की हत्या कर दी। बदमाशों में एक धीरज सिंह कुछ समय पहले गोरखपुर स्टेशन से पुलिस कस्टडी से फरार हो गया था। दूसरा बदमाश विकास भी गोरखपुर का रहने वाला है। जानकारी के अनुसार महराजगंज कारागार में निरुद्ध धीरज सिंह पुत्र इंद्रदेव सिंह उर्फ मुख्तार सिंह निवासी मझनपुर, गाजीपुर मार्च में मऊ से पेशी के बाद महराजगंज लौटते समय गोरखपुर स्टेशन से फरार हो गया था। 16 मार्च को एडीजी रेलवे लखनऊ ने उस पर 15 हजार का इनाम घोषित किया था। उसे पकड़ने के लिए कई थानों की पुलिस लगी हुई थी। बुधवार दिन में दो बजे जैसे ही शहर कोतवाल गोविंद सिंह और एसओजी प्रभारी रामनरेश यादव को सर्विलांस पर सूचना मिली कि धीरज अपने साथी विकास के साथ चिरैयाकोट थाना क्षेत्र के सरसेना गांव में छिपे हैं, पुलिस मौके पर पहुंच गई। बदमाश बाइक से भागने लगे। पुलिस फिल्मी स्टाइल में बदमाशों के पीछे लग गई। दोनों बदमाश भागते हुए अवस्था इब्राहिम उर्फ मठिया पुरवे गांव में रामजी बरनवाल के घर में घुस गए। शहर कोतवाल गोविंद सिंह पीछा करते हुए पुलिस टीम के साथ बरनवाल के घर पर पहुंच गए और बदमाशों को बाहर निकालने के लिए ललकारा। इतने में बदमाशों ने मकान मालिक और उनके बच्चों को बंधक बनाकर फायर झोंकना शुुरू कर दिया। इस दौरान गोली लगने से शहर कोतवाल गोविंद सिंह की मौत हो गई, पर सिपाहियों ने मोर्चा संभाले रखा। खबर आला अधिकारियों तक पहुंची तो आसपास के जिलों की फोर्स मौके पर पहुंच गई। एसपी जोगेंद्र कुमार ने खुद कमान संभाल ली। पांच घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद भाग रहे दोनों बदमाश मार गिराए गए। इससे पहले बदमाशों ने मकान मालिक रामजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मुठभेड़ में एक सिपाही भी घायल हो गया। बदमाश रामजी के परिवार को बंधक बनाकर घटना को अंजाम दे रहे थे। शहीद इंस्पेक्टर को सरकार देगी दस लाख पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ में शहीद इंस्पेक्टर गोविंद सिंह को सरकार दस लाख की अनुग्रह राशि देगी। इसके अलावा बदमाशों ने जिस परिवार को बंधक बनाया था, उस परिवार के मुुखिया की मौत हो जाने पर दो लाख की अनुग्रह राशि दी जाएगी। मुठभेड़ में शामिल पुलिस बल को भी सम्मानित किया जाएगा। मऊ केमठिया गांव में पुलिस की एसओजी टीम की बुधवार को बदमाशों से मुठभेड़ हो गई। बदमाशों ने पास के ही एक घर को बंधक बना लिया था। चार घंटे से अधिक देर तक चली मुठभेड़ में मऊ के सदर कोतवाल गोविन्द सिंह की गोली लगने से मौत हो गई। वहीं बदमाशों ने बंधक परिवार केमुखिया राम जी गुप्ता को भी गोली मार दी। इसकेबाद उनकी भी मौत हो गई। बदमाश इतने दुर्दांत थे कि उन्हें मारने के लिए पुलिस को वाराणसी से स्पेशल कमांडो की टीम भेजनी पड़ी। इसके बाद टीम ने बदमाशों को ढेर कर दिया। बदमाशों की पहचान गोरखपुर के धीरज सिंह और विकास सिंह के रूप में की गई। |
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